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________________ ६३० पुद्गल-कोश .३ संस्थान आकृति-संस्थानम्, इत्थंस्थम् अनित्थंथम् । -जैनसिदी. प्र १। सू १५ संस्थानं द्विधेत्थं लक्षणंx xx। अनित्यलक्षणं च । -तत्त्वराज• अ५ । सू २४ तच्च नियताकार इत्थंस्थम् । अनियताकार अनित्थंस्थम् । -जमसिदी• प्र२। सू १२ की टीका आकृति को संस्थान कहते हैं। वह संस्थान दो प्रकार का होता है-इत्थंस्थ और अनित्थंस्थ । अकलंकदेव ने तत्त्वार्थ राजवार्तिक में इन्हीं दो शब्दों को इत्थं और अनित्थं संज्ञा से अभिहित किया है। नियत आकार वाले पुद्गलों से इत्थंस्थ कहा जाता है । अनियत आकार वाले पुद्गलों को अनित्थंस्थ कहा जाता है । वृत्तव्यस्रचतुरस्रायतनपरिमंडलादित्थम् । -तत्त्वराज अ ५ । सू २४ जैसे-त्रिकोण, आयतन, परिमंडल आदि। इनके अतिरिक्त जो अनियत आकार है उन्हें अनित्थंस्थ कहा जाता है, जैसे बादल आदि की आकृतियां । पुद्गल का संस्थान अथाजीवपरिगृहीतं वृत्त-व्यस्र-चतुरस्रायतनपरिमण्डलभेदात् । -तत्त्व अ ५ । सू २४ । भाष्य टीका संस्थान के पांच भेद हैं-परिमंडल, वृत्त, वस्र, चतुरस्र और आयत । पुद्गलों के संस्थान आकृतिः संस्थानम्, इत्थंस्थम्, अनिस्थं स्थम् । संस्थान द्विधेत्थ लक्षणं अनित्थलक्षणं च ॥ -तत्त्वराज० ५ । सू २४ तच्च चतुस्रादिकं इत्थंस्थम् । - जैनसिदी० प्र१। सू १२ की टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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