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________________ पुद्गल-कोश ववहारेण दु एदे जीवस्स हवंति वण्णमादीया। गुणठाणंता भावा ण दु केई. णिच्छयणयस्स ॥५६॥ -समय• गा ५० से ५६ जीव के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान, संहनन, राग, द्वेष, मोह, आश्रव, कर्म नोकर्म, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, अध्यात्मस्थान, अनुभागस्थान, योगस्थान, बंधस्थान, उदयस्थान, मार्गणास्थान, स्थितिबंधस्थान, संक्लेशस्थान, विशुद्धिस्थान, संयमलब्धिस्थान, जीवस्थान, गुणस्थान आदि भाव, निश्चयनय से जीव के परिणाम नहीं है, पुद्गल परिणाम है। लेकिन व्यवहारनय से जिन भगवान ने इनको जीव परिणाम कहा है। एए सव्वे भावा पुग्गलदव्य परिणामणिज्पण्णा। केवल जिर्णाहं भणिया कह ते जीवो ति वचंति ॥४४॥ ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णिदो जिणवरेहि। जीवा . एदे. सव्वे । अज्झवसाणदिओ भावा ॥४६॥ .. . .... - समय० गा ४४, ४६ तावृत्ति-देहरागादयः कमजनितपर्यायाः पुद्गलद्रव्यकर्मोदयपरिणामेन निप्पन्नाः, केवजिणिनः सर्वज्ञ: कर्मजनिता इति भणिताः कथं ते निश्चयनयेन जीवा इत्युच्यते न कथमपि x x x॥४४॥ व्यवहारनयस्य स्वरूपं वशितं यत्कि कृतं उपदेशो वणितः कथिता जिनवरः। कथंभूतः। जीवा एते सर्वे अध्यवसानादयो भावः परिणामा भण्यंत इतिxxx॥४६॥ सर्वज्ञ भगवान ने शरीर, राग, द्वेष आदि अध्यवसायों को पुद्गलद्रव्य कर्मोदय के परिणाम से निष्पन्न कहा है अतः निश्चयनय से इनको जीव या जीव परिणाम नहीं कहा जा सकता है । इन सब अध्यवसानादि भावों को जिनवर भगवान ने जो जीव या जीव परिणाम कहा है वह व्यवहारनय की अपेक्षा से कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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