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________________ ५८९ पुद्गल-कोश पल्लासंखेज्जदिमो भागो पत्तेयदेहगुणगारो। सुण्णे अणंता लोगा थूलणिगोद पुणो वोच्छं ॥१२॥ सेडिअसंखेज्जदिमो भागो सुण्णस्स अंगुलस्सेव । पलिदोवमस्स सुहुमे पदरस्स गुणो दु सुग्णस्स ॥१३॥ एदेसि गुणगारो जहणियादो दु जाण उक्कस्से । साहिअमिह महखंधेऽसंखेज्जदिमो दु पल्लस्स ॥१४॥ -षट् खण्ड ५ । अ ४ । सूत्र ९७ में उद्धृत । पु १४ इनमें अणुवर्गणा एक है, संख्याताणुवर्गणा संख्यातगुणी है। असंख्याताणुवर्गणा असंख्यातलोक गुणी है। अनन्ताणुवर्गणा सहित पांच अग्राह्यवर्गणाओं का गुणाकार अभव्यों से अनंतगुणा है। आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा में अभव्य जीवों का भाग देने पर जो लब्ध आवें उतना जघन्य से उत्कृष्ट लाने के लिए विशेष का प्रमाण है। ध्र वस्कंधवर्गणा, सांतरनिरन्तरवर्गणा और प्रथम ध्र वशून्यवर्गणा में अपने जघन्य से उत्कृष्ट का प्रमाण लाने के लिए गुणकार का प्रमाण सब जीवों में अनंतगुणा है । प्रत्येक शरीर वर्गणा का गुणाकार पल्य का असंख्यातवां भाग है। दूसरी ध्रु वशून्यवर्गणा में गुणकार अनंतलोक है। स्थूल निगोदवर्गणा का गुणकार जगश्रेणि का असंख्यातवां भाग है। तीसरी शून्यवर्गणा गुणकार अंगुल का असंख्यातवां भाग है। सूक्ष्म निसोदवर्गणा में गुणकार पल्य का असंख्यातवां भाग है। चौथी शून्यवर्गणा का गुणकार जगप्रतर का असंख्यातवां भाग है। इन सब वर्गणाओं के ये गुणकार अपने-अपने जघन्य से उत्कृष्ट भेद लाने के लिए जानने चाहिए। तथा महास्कंध में अपने जघन्य से अपना उत्कृष्ट पल्य का असंख्यातवां भाग अधिक है। ___ नोट-यह एक श्रेणि वर्गणा को प्ररूपणा है। एक बन्धनबद्ध सूक्ष्म पुद्गल स्कंधों से समवेत पुद्गलों का अन्तर नहीं पाया जाता है। '३४ वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की अपेक्षा पुद्गलों की अल्पबहुत्व एएसि गं भंते ! एगगुणकालयाणं दुगुणकालयाण य पोग्गलाणं दवट्ठयाए० ? एएसि णं जहा परमाणुपोग्गलादीणं तहेव वत्तद या निरवसेसा, एवं सन्वेसि वन्न-गंध-रसाणं । [ सू १६१] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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