SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 677
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल-कोश ५८५ उत्तर - जैसा संख्यातप्रदेशों में स्थित संख्यातप्रदेशी परिमंडल संस्थान के संबंध में कहा वैसा ही कहना - परन्तु संक्रमण में - द्रव्यादिक-विचार के संक्रमण में अनंतगुण जानना चाहिए । इसी प्रकार यावत् ( वृत्त - चतुरस्र त्र्यस्र - आयत ) आयंत संस्थान तक कहना चाहिए । असंख्यात प्रदेशों में रहे हुए अनंतप्रदेशी परिमंडल संस्थान के अचरमखण्ड, चरमखण्ड, चरमांत प्रदेश व अचरमांत प्रदेश के विषय में अल्पबहुत्व जैसा रत्नप्रभा नारकी के विषय में कहा — वैसा ही कहना चाहिए परन्तु संक्रम - द्रव्यादिक के विचार में अनंतगुणा कहना चाहिए । इसी प्रकार वृत्त, चतुरस्र त्र्यस्र और आयत संस्थान के संबंध में जानना चाहिए । · ३० इन्द्रिय तथा कर्कशगुरु- मृदुलघु का अल्पबहुत्व १ कर्कशगुरु गुण की अपेक्षा एएसि ण भंते! सोइंदिय - चक्खिं दिय- घाणिदिय जिब्भिदिय- फासिदियाण, कक्खडगुरुयगुणाणं, मउयल हुयगुणाणं, कक्खडगरुयगुणाणं मउयगुणा य करे करेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स कक्खडगस्य गुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अनंतगुणा, घाणिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अनंतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अनंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा गुणा । - पण्ण० पद १५ । सू १६ सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुण, उससे श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुण अनंतगुणे हैं, उससे घ्राणेन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुण अनंतगुणे हैं, उससे रसेन्द्रिय के कर्कश - गुरु गुण अनंतगुणे हैं, उससे स्पर्शेन्द्रिथ के कर्कश - गुरु गुण अनंतगुणे हैं । • २ मृदुलघुगुण की अपेक्षा मउयल हुयगुणाणं - सम्वत्थोवा फासिदियस्स मउयलहुवगुणा, जिभिदियस्स मउयल हुयगुणा अनंतगुणा, घाणिदिस्स मउयल हुयगुणा अनंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy