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________________ ( 64 ) का रूप है, उससे वेयकवासी, अच्युत, आनत, सहस्रार, शुक्र, लांतक, ब्रह्म, माहेन्द्र, सनत्कुमार, ईशान, सौधर्म, भवनपति, ज्योतिषी और व्यन्तर देवों का अनुक्रमतः अनंतगुणहीन हैं, उससे चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, मांडलिक राजाओं का रूप अनंतगुणहीन है। उसके बाद अन्य राजाओं व सर्व मनुष्यों का रूप है। स्थानगत होता है। वे छः स्थान इस प्रकार हैं-(१) अनंतभागहीन, (२) असंख्यातभागहीन, (३) संख्यातभागहीन, (४) संख्यातगुणहीन, (५) असंख्यातगुणहीन (६) अनंतगुणहीन । अस्तु औदारिक शरीर से वैक्रिय शरीर सूक्ष्म पुद्गलों से बना हुआ है, उससे आहारक शरीर सूक्ष्म पुद्गलों से बना हुआ है, उससे तैजस और तैजस से कार्मण सूक्ष्म शरीर पुद्गलों का बना हुआ है। खाये हुए आहार का परिपाक तथा श्राप देना अथवा अनुग्रह करना-तेजस शरीर का प्रयोजन है तथा एक भव से दूसरे भव में गति करना-कार्मण शरीर का प्रयोजन है।' आहारक शरीर चौदह पूर्वधर को हो सकता है। आहारक शरीर का अन्तरकाल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छः मास का कहा है । निगोद जीव अनत होते हुए भी औदारिक शरीर असंख्यात है परन्तु तैजस-कार्मण शरीर अनत हैं । जिसमें सदा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि अनतगुण हो वह पुद्गल द्रव्य हैं। छः द्रव्यों में से प्रथम पांच द्रव्य सत् होने से तथा शक्ति अथवा व्यक्ति अपेक्षा से विशाल क्षेत्रवाले होने से अस्तिकाय है। काल द्रव्य अस्ति है किन्तु काय नहीं है। पंचास्तिकाय संग्रह पर श्री अमृतचन्द्राचार्य ने समव्याख्या नाम की तथा श्री जयसेनाचार्य ने तात्पर्य वृत्ति नाम की संस्कृत टीकाएं लिखीं हैं। जो पुद्गल इष्ट, कांत, प्रिय और मनोज्ञ है और जो शुभ वर्ण, गंध, रस और स्पर्शवाले हैं वे देवों के शरीर में आहार रूप में परिणत होते हैं। अव्यवहार राशि की कायस्थिति दो प्रकार की है-(१) अनादिसांत व (२) अनादिअनंत । जो अव्यवहार राशि से कदापि व्यवहार राशि प्राप्त नहीं करेगे वे अनादिअनत हैं जो अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि को प्राप्त होंगे वे अनादिसांत हैं। चौदह स्थान में संमुच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते है। ये गर्भज मनुष्य के विकार हैं१.-उच्चार ( बड़ीनीत ) २-प्रश्रवण ( लघुनीत) १. प्रकरण रत्नावली पृ० ९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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