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________________ पुद्गल-कोश तिर्यच पंचेन्द्रियं योनिक (पचिदिवतिरिक्खजोणिया) जहा तेइंदियाणं । -पण्ण पद २८ । सू १८०४ इसी प्रकार असुरकुमार से स्तनितकुमार के विषय में समझना चाहिए। लेकिन उष्ण कारण प्रत्यय से वर्ण से पीतवर्ण के और शुक्लवर्ण के, गंध से सुरभिगंध, रस से खट्टे-मीठे रस के स्पर्श से मृदु, लघु, उष्ण व स्निग्ध पुद्गलों का आहार करते हैं। मनोज्ञ पुद्गलों का आहार करते हैं अर्थात् वे उन पुद्गलों में पहले के अशुभ पुद्गलों से अच्छा बनाकर मनोज्ञ पुद्गलों का आहार करते हैं। नारकी की तरह पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक के विषय में जानना चाहिए परन्तु यह उष्ण कारण प्रत्यय नहीं कहना। वे पांचों वर्ण के पुद्गलों का आहार ग्रहण करते हैं. दो प्रकार के गंध के पुद्गलों का, पांचों प्रकार के रस के पुद्गलों का तथा कर्कश आदि आठों स्पर्श के पुद्गलों का आहार करते हैं। नोट-शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के पुद्गलों का आहार करते हैं। द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक-पृथ्वीकाय की तरह समझना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय के विषय में त्रीन्द्रिय की तरह जानना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में जानना चाहिए । मनुष्य__मणूसा एवं चेव। -पण्ण० पद २८ । सू १८०५ वाणव्यंतर-ज्योतिषी-वैमानिक देव वाणभंतरा जहा नागकुमारा, एवं जोइसिया x x x। एवं वेमाणिया वि। -पण्ण• पद २८ । सू १९०५ वानव्यंतर-ज्योतिषी तथा वैमानिक देवों के विषय में नागकुमार देवों की तरह समझना चाहिए। नारको और देव अनंतप्रदेशी अचित्त स्कंध पुद्गलों का (स्कंधों का) आहार करते हैं लेकिन सचित्त आहार व मिश्र आहार ग्रहण नहीं करते हैं। तिर्यंच मनुष्य सचित्त-अचित्त-मित्र तीनों प्रकार के पुद्गलों का आहार करते हैं। अधिकतर नारकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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