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________________ ५५२ पुद्गल-कोश परिणाममावलक्षणो भावः परिस्पंदनलक्षणाक्रिया। -प्रव० उ २ । सू ३७ की प्रदीपिका वृत्ति लक्षण की परिभाषा लक्ष्यतेऽने नेति लक्षणम् । -सिद्धपेनगणि वक्तव्यं जिससे लक्ष्य निर्दिष्ट किया जा कके, वह लक्षण है। .७९ नारकी और आहार के पुद्गल णेरइया णं भंते ! किमाहारभाहारेंति ? गोयमा! दवओ अणंतपदेसियाई, खेत्ती असंखेज्जपदेसोगाढाइ', कालतो अण्णतरठितियाई, भावओ वण्णमंताई गंधमंताइरसमंताईफासमंताईx x x। –पण्ण• पद २८ । सू १७९७ नारको द्रव्यतः-अनंतप्रदेशी ( पुद्गलों का) आहार ग्रहण करते हैं, क्षेत्रत:असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ ( रहे हुए), कालत: किसी भी ( अन्यतर ) कालस्थिति वाले और भावतः वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान् और स्पर्शवान् पुद्गलों का आहार करते हैं। नारकी और आहार के पुद्गल जाइ भावओ वण्णमंताई आहारति ताई कि एगवण्णाई आहारेति जाव कि पंचवण्णाई आहारेंति ? गोयमा ! ठाणमग्गण पडुच्च एगवण्णाई पि आहारति जाव पंचवण्णाइपि आहारति, विहाणमग्गणं पडुच्च काल वण्णाई पि आहारति जाव सुक्किलाइ पि आहारेति । -पण्ण. प २८ । सू १७९८ नारकी स्थानमार्गणा ( सामान्य ) की अपेक्षा से एक वर्ण वाले पुद्गलों का का आहार करते हैं यावत् पांच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं तथा विधान (भेद ) मार्गणा की अपेक्षा से कालेवर्ण वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् शुक्लवर्ण बाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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