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________________ ५४६ पुद्गल-कोश इरियावहक मक्खंधा कक्खडादिगुणण अवोहामउअफासगुणेण सहिया चेव बंधभागच्छति त्ति इरियावहकम्मं मउअंति भण्णदे । ईर्यापथ कर्म स्कंध कर्कश आदि गुणों से रहित हैं व मृदु स्पर्श गुण से युक्त होकर ही बध को प्राप्त होते हैं अतः ईर्यापथ कर्म को 'मृदु' कहा है । च. पोग्गलपदेसु चिरकालावद्वाणणिबंधणणिद्धगुणपडिवक्खगुणंण पडिग्ग हियत्तादो ल्हुक्खं । जइ एव तो इरियावहकम्मम्मि ण वखंधो, ल्हुक्खेगगुणाणं परोप्परबंधाभावादी ? ण, तत्थ दुरहियाणं बंधुवलंभादो । सद्दणिद्दसो किफलो ? इरियावहकम्मस्स कम्मक्खधा सुअंधा सच्छाया त्ति जाणावणफलो इरियावहकम्मवखंधा पंचवण्णाण होंति, हंसधवला चेव होंति त्ति जाणावण सुक्किलणिसो कदो। एत्थतण चैव सद्दो सव्वत्थ जोजेयव्व पडिवक्खणिराकरणटुं । इरियावहकम्मवखंधा रसेन सक्करादो अहियमहुरत्तजुत्ता ति जाणावणट्ठ मंदणिद्देसो कदो । कुदो एवमुवलब्भदे ? संदशब्दस्य मन्द्रशब्दपरिणामत्वेनोपलं भात् । बंधमागयपरमाणू विदियसमए चेव णिस्सेसं णिज्जरं तित्ति महव्वयं । - षट्० खण्ड ५, ४, २४ । पु १३ ईर्यापथ कर्म स्कंध रूक्ष है क्योंकि पुद्गल प्रदेशों में चिरकाल तक अवस्थान का कारण स्निग्ध गुण का प्रतिपक्षभूत गुण उसमें स्वीकार किया गया है । रूक्ष गुण वालों का द्वयधिक गुणवालों का बंध पाया जाता है । ईर्यापथ कर्म के कर्मस्कंध अच्छी गंध वाले और अच्छी कांति वाले होते हैं । ईर्यापथ कर्म स्कंध पाँच वर्ण वाले नहीं होते, किन्तु हंस के समान धवल वर्णं वाले ही होते हैं । पथ कर्म स्कंध रस की अपेक्षा सक्कर से भी अधिक माधुर्य युक्त होते हैं । बंधन को प्राप्त हुए परमाणु दूसरे समय में ही सामस्त्य भाव से निर्जरा को प्राप्त होते हैं । इसलिए ईर्यापथ कर्म स्कंध महान् व्ययवाले कहे गये हैं । -२ पुद्गलविपाकी कर्म- प्रकृत्तियाँ देहादी फारसं ता थिरसुहपत्तेयदुगं Jain Education International णिमिणतावजुगलं च । पोग्गल विवाई | पण्णासा अगुरुतियं For Private & Personal Use Only - कम्मगो० गा ४७ www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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