SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल - कोश ५१७ ४-७ – कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है ( एक वचन और बहुवचन आश्री चार भंग 1 ८-११ - कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य है । ( एक वचन और बहुवचन आश्री चार भंग ) । १२- १५ – कथंचित् नो आत्मा और अवक्तव्य है ( एक वचन और बहुवचन आश्री चार भंग ) । १६ - कथंचित आत्मा और नो आत्मा तथा आत्मा, नो आत्मा रूप से अवक्तव्य है । १७ - कथंचित् आत्मा, नो आत्मा तथा आत्माएं और नो आत्माएं रूप से अवक्तव्य है । १८ - कथंचित् आत्मा, नो आत्माएं तथा आत्मा और नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है । १९ -- कथंतित् आत्माएं, नो आत्मा और आत्मा तथा नो आत्मा रूप से अवक्तव्य है । इस प्रकार कहने का कारण यह है कि - १ - अपने आदेश से आत्मा है । २ - पद के आदेश से नो आत्मा है । ३ – तदुभय के आदेश से आत्मा और अवक्तव्य है । नोआत्मा — इस उभय रूप से ४ से ७ - एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से ( एक वचन और बहुवचन आश्री ) चार भंग होते हैं । ८-११- - सद्भाव पर्याय और तदुभय पर्याय की अपेक्षा से ( एक वचन बहुवचन आश्रो ) चार भंग होते हैं । १२-१५ - असद्भाव पर्याय और तदुभय पर्याय को अपेक्षा से ( एक वचन बहुवचन आश्री ) चार भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy