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________________ ५०० पुद्गल-कोश तजसाद्या वर्गणा अ-प्येवं वर्णादिभिः स्मृताः । स्पर्शतस्तु चतुःस्पर्शा-स्तेषां मृदुलधुधं वो ॥४३॥ अन्यौ द्वौ च स्निग्धशीतौ स्निग्धोष्णौ वा प्रकोत्तितौ। रूक्षौष्णौ रूक्षशीतो वा विज्ञ वैद्यौ यथागमं ॥४४॥ अयं पंच संग्रहवृत्तिशतकबृहट्टीकाद्यभिप्रायः। टीका-कर्मप्रकृतिप्रज्ञप्त्याद्यभिप्रायेण त्वेतासु स्निग्धोष्णरूक्षशीतरूपमेव स्पर्शचतुष्टयं स्यान्नान्यदिति । -लोकप्र० । सर्ग ३५ । गा ४१ से ४४ । पृ. ६५५ औदारिक से आहारक तक की वर्गणायें अष्टस्पर्शी, पंचवर्णी, पचरसवाली और दो गंधवाली होती है। यद्यपि परमाणु-एक वर्ण, एक रस, एक गंध और दो स्पर्शवाला होता है। आठ स्पर्श जो कहे गये हैं वह समुदाय ( स्कंध ) की अपेक्षा कहे गये हैं। तेजसादि वर्गणा भी इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस वाली होती है। (प्रथम की तीन वर्गणा की तरह पाँच वर्ण, पाँच रस-दो गंध वाली होती है। ) परन्तु स्पर्श की अपेक्षा चतुःस्पर्श वाली होती है। उसमें मृदु और लघु-ये दो स्पर्श निरंतर होते हैं और दूसरे दो स्निग्ध और शीत अथवा स्निग्ध और उष्ण स्पर्श होते हैं। अथवा रूक्ष और उष्ण अथवा रूक्ष और शीत-ये दो स्पर्श होते हैं। .६ नयको अपेक्षा वर्गणा का विवेचन वग्गणपरूवणदाए ताणि चेव तिण्णि अणियोगद्दाराणि । तत्थपरूवणवाए अस्थि जहणिया वग्गणा। एवं दव्वं जाव उक्कस्सवग्गणेत्ति। एवं परूवणा गदा। पमाणं वुच्चदे-अणंतेहि सरिसधणियपरमाणूहि एगा वग्गणा होदि, दव्वट्ठियणयावलंबादो। पज्जवट्टियणए पुण अवलंबिदे वग्गो वि वग्गणा होदि। णिवियप्पवग्गस्स कथं वग्गणतं? ण, उवरिमएगोलि पेक्खिदूण सवियप्पस्स वग्गणतं पडि विरोहाभावादो। विरोहे वा महाखंडवग्गणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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