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________________ पुद्गल-कोश ४८९ अर्थात् यह असंख्य प्रदेशी लोकाकाश में अनन्त और अनन्तानन्त प्रदेशी स्कन्धों का अधिकरण कैसे हो सकता है। इसमें कोई आपत्ति नहीं है । सूक्ष्म परिणाभावगहनशक्ति के योग से परमाणु आदि सूक्ष्म भाव को परिणत हो जाते हैं। अतः एक-एक आकाश प्रदेश में अनन्तानन्त परमाणु व स्कन्धों का अवस्थान निविरोध होता है । .६४ स्कंध पुद्गल और चरम-अचरम .१ दुपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! दुपएसिए खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वर ३ । सेसा २३ भंगा पडिसेहेयव्वा ॥७८२॥ तिपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! तिपएसिए खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तब्वए ३ नो चरिमाइ४ नो अचरिमाइ५ नो अवत्तवियाई६ नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमेय अचरिमाई सिय चरिमाई च अचरिमे य ९ नो चरिमाइच अचरिमाइ च १० सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११ सेसा १५ भंगा पडिसेहेयव्वा ॥७८३॥ चउपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! चउपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाई ४ नो अचरिमाई ५ नो अवत्तव्वयाइ६ नो चरिमे य अचरिमे य ७ नो चरिमे य अचरिमाइच ८ सिय चरिमाइच अचरिमे य ९ सिय चरिमाइच अचरिमाइच १० सिय चरिमे य अवत्तव्वए य ११ सिय चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२ नो चरिमाइच अवत्तव्वए य १३ नो चरिमाच अवत्तव्वयाइंच १४ नो अचरिमेय अवत्तवए य १५ नो अचरिमेय अवत्तव्वयाइच १६ नो अचरिमाईच अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाईच अवत्तवयाईच १८ नो चरिमे य अचरिमे च अवत्तवए य १९ नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाईच २० नो चरिमे य अचरिमाईच अवत्तव्वए य २१ नो चरिमे य अचरिमाईच अवत्तव्वयाईच २२ सिय चरिमाइ च अचरिमे य अवत्तव्वए य २३ सेसा भंगा पडिसेहेयव्वा ॥७८४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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