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________________ ( 52 ) अर्थात् समय अल्प है, निमेष अधिक है और मुहूर्त उससे भी अधिक है-ऐसा जो ज्ञान होता है - वह समय, निमेष आदि का परिमाण जानने से होता है ; और वह कालपरिमाण पुद्गलों द्वारा निश्चित होता है। इसलिये व्यवहार काल की उत्पत्ति पुद्गलों द्वारा होती ( उपचार से ) कही जाती है। जीव पुद्गलों के परिणाम में ( समयविशिष्टवृत्ति में ) व्यवहार से समय की अपेक्षा आती है । जिन प्राणों में चित्सामान्य अन्वय होता है वे भावप्राण हैं तथा जिन प्राणों में सदेव पुद्गलसामान्य, पुद्गलसामान्य, पुद्गलसामान्य-ऐसी एकरूपता-सदृशता होती है वे द्रव्यप्राण हैं। गुण, अंश, अविभाग प्रतिच्छेद । अविभाग परिच्छेदों को यहां अगुरूलघु गुण ( अंश ) कहा है। षट्स्थान पतित हानि-वृद्धि-छः स्थानों में समावेश पाने वाली वृद्धि-हानि ; षट्गुण हानि-वृद्धि । विशिष्ट आहारादि के वश शरीर में वृद्धि होने पर जीव के प्रदेश विस्तृत होते हैं और शरीर सुख जाने पर प्रदेश भी संकुचित होते हैं। दो प्रदेशी स्कंध से लेकर अनंताणुक स्कंध तक के सर्व स्कंध बहुप्रदेशी होने से महान् है। व्यक्ति अपेक्षा से परमाणु एक प्रदेशी है और शक्ति अपेक्षा से अनेक प्रदेशी भी ( उपचार से ) है। प्रवाहक्रम के अंश प्रत्येक द्रव्य में होते हैं किन्तु विस्तार क्रम के अश अस्तिकाय के ही होते हैं। परमाणु ( व्यक्ति अपेक्षा से) निरवयव होने पर भी उनको सावयवपने की शक्ति सद्भाव होने से कायत्व-सिद्धि निरपवाद है। क्योंकि उपचार से परमाणु को भी शक्ति अपेक्षा से अवयव प्रदेश कहा है। जिस प्रकार पुद्गल से पृथक् स्पर्श-रस-ग्रन्थ-वर्ण नहीं होते, उसी प्रकार द्रव्य के बिना गुण नहीं होते हैं। जिस प्रकार स्पर्श, गध-रस-वर्ण से पृथक् पुद्गल नहीं होता उसी प्रकार गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता। भाव का नाश नहीं है तथा अभाव का उत्पाद नहीं है। भाव गुणपर्यायों में उत्पाद-व्यय करते हैं। छः द्रव्यों में जीव, पुद्गल, आकाश, धर्म व अधर्म प्रदेश प्रचयात्मक ( प्रदेशों का समूहमय ) होने से पांच अस्तिकाय है। काल को प्रदेश प्रचयात्मकपन का अभाव होने से वह वास्तव में अस्तिकाय नहीं है। लोक सवंतः विविध प्रकार के अनंतानंत सूक्ष्म और बादर पुद्गलकायों द्वारा अवगाहित होकर गाढ़ भरा हुआ है। अमृतचन्द्राचार्य ने पंचास्तिकाय संग्रह में कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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