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________________ पुद्गल-कोश ४३३ दो, तीन आदि पुद्गलों का ( परमाणु पुद्गलों का ) जो समवाय संबंध होता है उसे पुद्गल बंध कहते हैं। जिस स्निग्ध और रुक्ष आदि गुण के कारण पुद्गलों का बंध होता है उसे पुद्गल बंध कहते हैं । विसदश स्निग्धता और विसदृश रूक्षता बंध है। अर्थात् स्निग्धता में विसदृश्यता रूक्षता की अपेक्षा और रुक्षता में विसदृश्यता स्निग्धता की अपेक्षा समझनी चाहिए । फलस्वक्षप स्निग्ध परमाणुओं का रूक्ष परमाणुओं के साथ बंध होता है और रूक्ष परमाणुओं का भी स्निग्ध परमाणुओं के साथ बंध होता है क्योंकि यहाँ गुण की . अपेक्षा समानता नहीं पाई जाती है। स्निग्ध परमाणु अन्य स्निग्ध परमाणुओं के साथ नहीं बंधते क्योंकि स्निग्ध गुण की अपेक्षा वे समान है। रूक्ष पुद्गल अन्य रूक्ष पुद्गलों के साथ नहीं बंधते, क्योंकि रूक्ष गुण की अपेक्षा वे समान है । "णिद्धल्हक्खा ण बझंति' अर्यात् स्निग्ध पुद्गल और रूक्ष पुदगल परस्पर बंध को प्राप्त होते हैं, क्योंकि इनमें विसदृश्यता पाई जाती है। क्या गुणों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा समान स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का बंध होता है या अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा विसदृश स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का बंध होता है-ऐसा प्रश्न करने पर 'रूवारूवी य पोग्गला बझंति' यह कहा है। जो स्निग्ध और रूक्ष गुणों से युक्त पुद्गल गुणों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा समान होते हैं वे रूपी कहलाते हैं। वे भी बंध को प्राप्त होते हैं। और विसदृश पुद्गल अरूपी कहलाते हैं - वे भी बंध को प्राप्त होते हैं । स्निग्ध और रूक्ष पुद्गल गुणों के अविभाग-प्रतिच्छेदों की संख्या की अपेक्षा चाहे समान हों, चाहे असमान हों-उनका परस्पर बंध होता है । द्विमात्रा स्निग्धता और द्विमात्रा रूक्षता (परस्पर ) बंध है । जिस स्निग्धता में दो मात्रा अधिक या हीन होती है वह द्विमात्रा स्निग्धता कहलाती है—वह बंध है अर्थात् बंधन का कारण है। स्निग्ध पुद्गल दो अविभाग-प्रतिच्छेद अधिक स्निग्ध पुद्गलों के साथ या दो अविभाग-प्रतिच्छेद कम स्निग्ध पुद्गलों के साथ बंधते हैं । इनका तीन आदि अविभाग प्रतिच्छेद अधिक पुद्गलों के साथ और आदि अविभागप्रतिच्छेदक पुद्गलों के साथ बंध नहीं होता है। इसी प्रकार रूक्ष पुदगलों का रूक्ष पुद्गलों के साथ बंध का कथन करना चाहिए । स्निग्ध पुद्गल का दो गुण अधिक स्निग्ध पुद्गल के साथ और रूक्ष पुद्गल का दो गुण अधिक रूक्ष पुद्गल के साथ बंध होता है। तथा स्निग्ध पुद्गल का रूक्ष पुद्गल के साथ जघन्य गुण के सिवाय विषम या सम गुण के रहने पर बंध होता है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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