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________________ ४२८ पुद्गल-कोश अभिप्राय:- किं द्विगुणस्निग्धो द्विगुणरूक्षं स्नेहात्मतया परिणमयत्युत द्विगुणरूक्षो द्विगुणस्निग्धं रूक्षात्मतया परिणमयतीति ? एवं शेषविकल्पाः द्रष्टव्याः । तथा किमेकगुण स्निग्धास्त्रिगुण स्निग्धामात्मसात्करोतीत्येवं त्रिगुणस्निग्धः एकगुण स्निग्धमित्यादिसं देहविच्छेदायात्रोच्यते भाष्य - स्निग्धरूक्षयोः पुद्गलयोः स्पृष्टयो बंधो भवति ॥ ३२ ॥ ta आह किमेष एकान्त इति । सिद्ध टीका- 'स्निग्धरूक्षयोरित्यादि भाष्यम् । स्नेहो हि गुण स्पर्शाख्यः, तत्परिणामः स्निग्धः, तथा रूक्षोऽपि, एकः स्निग्धोऽपरो रूक्षः, तयोर्भावः स्निग्धरूक्षत्वं तत्परिणामापत्तिः तस्मात् स्निग्धरूक्षत्वादिति हेतो पंचमी, अण्वोरणूनां वा बंधो भवति । x x x । स्पृष्टयोरिति संयुक्तयोर्नासंयुक्तयोरिति, अनेन संयोगमात्रं गृहीतं संयोगपूर्वक सकल बंधज्ञापनार्थम्, तत्र बंधात् प्रतिघातो जायतेऽण्वोरणूनां वा, प्रतिघातश्चैकदेशावगाहेऽन्योन्यं प्रतिहननम् । x x x - तत्त्व ० अ ५ | सू ३५ अवाहेत्यादिसं बंधप्रतिपत्तिः किमेषः एकांत इति ? किमिति प्रश्नार्थः, एष इत्यन्तरयोगार्थाभिसंबंध, स्निग्धगुणानां रूक्षगुणानां च बंधो भवतीति, इतिशब्दोऽवधारणार्थः । किमेष नियम एव सर्वस्य स्निग्धगुणस्य रूक्षगुणेन बंध इति, एवं पृष्टे अत्रोच्यते इत्याह भाष्य - स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों के स्पृष्ट होने से बंध रूप परिणमन होता है लेकिन यह एकांत नियम नहीं है । टीका - पुद्गल के स्पर्श गुण के आठ भेदों में स्नेह और रूक्ष गुण भी हैं । इन स्निग्ध तथा रूक्ष स्पर्श गुणों के कारण पुद्गल का बंध रूप परिणमन होता है । पुद्गलों के स्पृष्ट होने से अर्थात् संयुक्त होने से बंध होता है, असंयुक्त का बंध नहीं होता है। पुद्गलों के सकल बंध संयोग पूर्वक ही होते हैं - ऐसा समझना चाहिए । बंध होने से दो अणुओं या अनेक अणुओं का परस्पर में प्रतिघास होता है। और यह प्रतिघात जब एक देश अवगाही होता है तब अणुओं का परस्पर प्रतिहनन होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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