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________________ ४१२ -४ तद् भेदसंघाताभ्यामपि । भवति । पुद्गल - कोश - जैसिदी ० प्र२ । सू १८ विभिन्न परमाणुओं का एक होना जैसे स्कंध है, वैसे विभिन्न स्कंधों का एक होना व एक स्कंध का एक से अधिक परमाणु की इकाई में टूटने का परिणाम भी एक स्वतन्त्र स्कंध है । स्कन्धस्य भेदतः संघाततोऽपि स्कन्धो • ५ तत्र अन्त्यं अशेषलोकव्यापि महास्कन्धस्य । कम से कम दो परमाणुओं का एक स्कंध होता है जो द्विप्रदेशी स्कंध कहलाता है और कभी-कभी अनंत परमाणुओं के स्वाभाविक मिलन से एक लोक व्यापी महास्कंध भी बन जाता है । स्कन्ध देश -६ बुद्धिकल्पितो वस्तवंशी देशः । वस्तुनोऽपृथग्भूतो बुद्धिकल्पितोंशो देश उच्चते । - जैसिदी ० प्र १ । सू ३० स्कन्ध एक इकाई है | उस इकाई से बुद्धि कल्पित एक भाग को स्कंधदेश कहा जाता है । निरंशो देवः प्रदेशः कथ्यते । - जैसिदी० प्र १ । सू १५ नोट – इस दण्ड का आधा भाग या वह इस पुस्तक का एक पृष्ठ है तो वह उस स्कन्ध रूप दण्ड का पुस्तक का एक देश कहलाता है । जिसे हम देश कहेंगे वह स्कन्ध से पृथग्भूत नहीं होगा । पृथग्भूत होने से तो वह स्वयं एक स्कन्ध की संज्ञा ले लेगा । •७ प्रदेश Jain Education International परमाणु जब तक स्कंधगत है तब तक वह स्कंध प्रदेश कहलाता है । नोट- वस्तु का वह अविभागी अंश जो सूक्ष्मतम है और जिसका फिर अंश नहीं बन सकता वह स्कंधप्रदेश है । For Private & Personal Use Only - जैसिदी ० १ । ३१ www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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