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________________ ४०८ पुद्गल-कोश मिलाकर ६४ भंग 'कर्कश और मृदु' के एक वचन में रखने से बनते हैं । (२) इन्हीं भंगों में 'कर्कश' को एक वचन में और 'मृदु' को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् ६४ भंग कहने चाहिए । ( ३ ) 'कर्कश को बहुवचन में और 'मृदु' को एक वचन में रखकर फिर पूर्ववत् ६४ भग कहने चाहिए । ( ४ ) कर्कश और मृदु दोनों को बहुवचन में रखकर फिर ६४ भंग कहने चाहिए । यावत् अनेक देश कर्कश, अनेक देश मृदु, अनेक देश गुरु, अनेक देश लघु, अनेक देश शीत, अनेक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । यह अन्तिम भंग है । ये सब मिलाकर आठ स्पर्श के २५६ भंग होते हैं । इस प्रकार बादर परिणत अनंत प्रदेश स्कंध के सब संयोग के मिलाकर १२९६ भंग स्पर्श सम्बन्धी होते हैं । नोट - इस प्रकार बादर अनंत प्रदेशी स्कंध में स्पर्श के चतुः संयोगी १६, पंचसंयोगी १२८, षट्संयोगी ३८४, सप्तसंयोगी ५१२ और अष्टसंयोगी २५६ - ये कुल मिलाकर १२९६ भंग होते हैं । एक परमाणु से लेकर सूक्ष्म अनंत प्रदेशी स्कंध के ३९८ भंग होते हैं और बादर अनंत प्रदेशी स्कंध के १२९६ भंग होते हैं । परमाणु से लेकर बादर अनंत प्रदेशी स्कंध तक वर्ण-गंध-रस-स्पर्श के कुल ६४७० भंग होते हैं । जिनका गणन पूर्व हो चुका है । -५१९ स्कंध और स्पर्श परमाण्वादीनामसंख्यातप्रदेशक स्कन्धपर्यन्तानां केषांचिदनन्तप्रादेशिकानामपि स्कन्धानां तथा एकप्रदेशावगाढानां यावत्संख्यात प्रदेशावगाढानां शीतोष्ण स्निग्धरूक्षरूपाश्चत्वार एव स्पर्शा इति प्रज्ञापनावृत्तौ । - लोक प्र० स ११ । गा १३ में उद्धृत । पृ० ५५० असंख्यात प्रदेशी स्कंध तक, कितनेक अनंत प्रदेशी स्कंध, आकाश के एक प्रदेश अवगाहित पुद्गल स्कंध यावत् आकाश के संख्यात प्रदेश में अवगाहित स्कंध में - शीत, स्निग्ध और रूक्ष - चार स्पर्श मिलते है । उष्ण, विवेचन - एक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श होते हैं । किन्तु किसी भी स्थूल स्कंध में पांच वर्ण, पाँच रस, दो गंध और आठ स्पर्श मिलेंगे । स्पर्शो की अपेक्षा से स्कंधों के दो भेद हो जाते हैं - चतुःस्पर्शी स्कंध व अष्टस्पर्शी स्कंध | सूक्ष्म से सूक्ष्म पुद्गल जाति चतुःस्पर्शी स्कंधात्मक है । चतुःस्पर्शी पुद्गलों में उक्त आठ स्पर्शो में से शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – ये चार स्पर्श मिलेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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