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________________ परमाणु पुद्गल के चरम, भंग - विकल्प बनते हैं । पुद्गल-कोश ३४५ अचरम तथा अवक्तव्य की अपेक्षा छबीस (२६) यथा— चरम, अचरम और अवक्तव्य – ये तीन पद हैं; उनमें एक-एक के संयोग से एकवचन के तीन मंग बनते हैं - ( १ ) चरम, (२) अचरम तथा (३) अवक्तव्य । बहुवचन के तीन भंग बनते हैं - ( ४ ) चरम (५) अचरम और (६) अवक्तव्य | इसी प्रकार एक संयोगी के कुल छः भंग बनते हैं । चरम, अचरम और अवक्तव्य पद के तीन द्विकसंयोगी होते हैं - यथा— चरम और अचरम पद का प्रथम, चरम और अवक्तव्य पद का द्वितीय तथा अचरम और अवक्तव्य पद का तृतीय और उनमें एक-एक द्विकसंयोग के चार-चार भंग होते हैं । प्रथम पद द्विक्संयोगी के इस प्रकार भंग बनते हैं । यथा- (७) एकवचन चरम और एकवचन अचरम । (८) एकवचन चरम और बहुवचन अचरम | (९) बहुवचन चरम और एकवचन अचरम | (१०) बहुवचन चरम और बहुवचन अचरम | इसी प्रकार द्वितीयपद - चरम और अवक्तव्य पद द्विकसंयोगी के चार भंग बनते हैं - यथा (११) एकवचन चरम और एकवचन अवक्तव्य | (१२) एकवचन चरम और बहुवचन अवक्तव्य । (१३) बहुवचन चरम और एकवचन अवक्तव्य । (१४) बहुवचन चरम और बहुवचन अवक्तव्य । इसी प्रकार तृतीय पद - - अचरम - अवक्तव्य पद द्विकसंयोगी के चार भंग बनते हैं -यथा- (१५) एकवचन अचरम और एकवचन अवक्तव्य । (१६) एकवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य । (१७) बहुवचन अचरम और एकवचन अवक्तव्य । (१८) बहुवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य | इस प्रकार द्विक्संयोगी के कुल बारह भंग बनते हैं । एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा तीन संयोगी आठ भंग बनते हैं - यथा(१९) एकवचन चरम, एकवचन अचरम और एकवचन अवक्तव्य | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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