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________________ ( 41 ) ___द्रव्यकर्म पुद्गल रूप है और वह भावकम के निमित्त से कर्म का रूप ग्रहण करता है। यह भावकर्म ही है जिससे जैन दर्शन में क्रिया कहा है। विग्रहगति में भी जीव कार्मण काययोग से क्रिया करता है। शरीर-संघातन नामकर्म के उदय से शरीर के पुद्गल सन्निहित, एकत्रित या व्यवस्थित होते हैं और शरीर-बंधन नामकर्म के उदय से वे परस्पर बंध जाते हैं। उत्त० में कहा है-- रूविणो चेवारूवी य, अजीवा दुविहा वि य । -उत्त० अ ३६ । गा २५४ उत्तरार्ध अजीवों के रूपी और अरूपी ये दो भेद कहे गये हैं। धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव ये पांच अस्तिकाय हैं। ये तिर्यकप्रचय-स्कंध रूप में है अतः इन्हे अस्तिकाय कहा जाता है। पुद्गल विभागी है। उसके स्कंध और परमाणु ये दो मुख्य विभाग हैं। परमाणु उसका अविभाज्य विभाग है। पुद्गल के स्कंध अनंत हैं—-द्विप्रदेशी यावत् अनंतप्रदेशी स्कंध । देश अनियत है । प्रदेश दो यावत् अनतपरमाणु । ___श्यामाचार्य द्रव्यानुयोग के विशेष व्याख्याकार थे। प्रज्ञापना जैसे विशालकाय सूत्र की रचना उनके विशद वैदुष्य का परिणाम है। प्रज्ञापना के ३६ पद्य है और ३४९ सूत्र है। यह समवापांग आगम का उपांग माना गया है। श्यामाचार्य को प्रथम कालक के रूप में पहचाना गया है । आचार्य श्याम ने निगोद का सांगोपांग विवेचन कर शकेन्द्र को आश्चर्याभिभूत कर दिया। इन्द्र ने कहा-मैंने सीमन्धर स्वामी से जैसा विवेचन निगोद के विषय में सुना था-वैसा ही विवेचन आपसे सुनकर मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ हूँ। आचार्य श्याम का जन्म वी. नि० २८० ( वि० पू० २९० ) बताया गया है। आप दस पूर्वधर थे।' आर्यरक्षित का जन्म वी० नि० ५२२ (वि० ५२, ई० पू० ५) में हुआ था। मुनि बने । सार्ध नौ पूर्वो का अध्ययन किया। सीमंधर स्वामी द्वारा इन्द्र के सामने निगोद व्याख्याता के रूप में आर्यरक्षित की प्रशंसा हुई। निगोद की सूक्ष्म व्याख्या इन्द्र ने आयंरक्षित से सुनी। इन्द्र ने बहुत प्रशंसा की। १. इतिहास के पृष्ठों पर उनकी प्रसिद्धि निगोद व्याख्याता के रूप में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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