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________________ ( 39 ) पुदगल द्रव्य की चार प्रकार की स्थिति है १- द्रव्यस्थानायु-परमाणु परमाणु रूप में और स्कंध स्कंध रूप में अवस्थित है-वह द्रव्यस्थानायु है। २-क्षेत्रस्थानायु जिस आकाश प्रदेश में परमाणु या स्कंध रहते हैं उसका नाम है क्षेत्रस्थानायु है । ३-अवगाहना स्थानायु-परमाणु और स्कंध का नियत परिमाण में अवगाहन होता है-वह है अवगाहन स्थानायु है। ४-भावस्थानायु-परमाणु और स्कंध के स्पर्श, रूप, गंध और वर्ण की परिणत को भाव स्थानायु कहा जाता है । नोट-क्षेत्र का सम्बन्ध आकाशप्रदेशों से है, वह परमाणु और स्कंध द्वारा अवगाढ़ होता है तथा अवगाहन का सम्बन्ध पुद्गल द्रव्य से है। तात्पर्य यह है कि उनका अमुक परिमाण क्षेत्र में प्रसरण होता है । पुद्गल के भी जीव की तरह दो भाव होते हैं-परिस्पन्दनात्मक तथा अपरिस्पन्दनात्मक । अपरिस्पन्दात्मक भाव में पुद्गल वर्ण, गंध, रस, स्पर्श तथा अगुरुलघु आदि गुणों में परिणमन करता है। (सर्व ५ । २२ । पृ० २९२) परिस्पन्दात्मक भाव में एजनादि क्रिया तथा देशान्तर प्राप्ति रूप क्रिया करता है। परिणाम अपरिस्पन्दात्मक है तथा क्रिया परिस्पन्दात्मक है। जब जीव कोई क्रिया करता है तब उसके आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन होता है । ___ जैन दर्शन का मंतव्य है कि समग्र लोक में कार्मण वर्गणा के पुद्गल व्याप्त है । ये पुद्गल स्वयं कर्म नहीं है, किन्तु उनमें कर्म होने की योग्यता है। ये कर्म रूप पर्याय विशेष प्रसंगानुसार परिणत हो जाते हैं। कहा है द्रव्यस्य पर्यायो धर्मान्तरनिवृत्ति-धर्मान्तरोपजननरूपः अपरिस्पन्दात्मकः परिणामः। - सर्व ० ५ । २२ । पृ० २९२ अर्थात् अपरिस्पन्दात्मक भाव परिणाम कहलाता है । परिणमन की अपेक्षा पुद्गल के तीन प्रकार हैं१-वैस्रसिक-स्वभावत: जिनका परिणमन होता है वे वैससिक पुद्गल हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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