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________________ २७६ पुद्गल-कोश (ङ) द्रव्यमित्यादिमध्यांतमविभागमतींद्रियं । अविनाश्यग्निशस्त्राद्यः परमाणुरुदाहृतं ॥ --योगसार । अधि २ । श्लो १० (च) परमाणुरनंशकः। -योगसार० अधि २ । श्लो ११ परमाणु पुद्गल अच्छेद्य है, अभेद्य है, अदाय है, अग्राहय है, अनर्द्ध है, अमध्य है, अप्रदेशी है, अविभागी है परन्तु सार्ध नहीं है, समध्य नहीं है और सप्रदेशी भी नहीं है। बुद्धि द्वारा अथवा क्षुरिकादि के द्वारा ( स्कंध से विछिन्न ) परमाणु पुद्गल का छेदन नहीं होता है अतः परमाणु पुद्गल अच्छेद्य है क्योंकि छेदन करने में समय आदि के अयोग्य होता है। कहा है-"जो सुतीक्ष्ण शस्त्रों के द्वारा भी छेदा-भेदा न जा सके उसे ज्ञानी पुरुष परमाणु कहते हैं और वह अंगुल आदि प्रमाण का आदि-मूलरूप है। सूची आदि के द्वारा अभेद्य है ; अग्नि-क्षार आदि के द्वारा अदाहय है, हस्तादि के द्वारा जिसके अर्द्धभाग ग्राहय नहीं है अतः परमाणु पुद्गल अग्राहय है । दो विभाग का अभाव होने से परमाणु पुद्गल अनर्द्ध है ; तीन विभाग का अभाव होने से परमाणु पुद्गल अमध्य है। अतः कहा गया है कि परमाणु पुद्गल अप्रदेशी है, निरवयव है। इस प्रकार परमाणु का विभाग भी संभव नहीं है। अथवा जो विभाग से बने वह विभागवाला और ऐसे विभाग का निषेध होने से परमाणु अविभागी होता है। (छ) परमाणुपोग्गलाणं भंते ! कि सड्ढा, अणड्डा? गोयमा ! सड्ढा वा, अणड्डा वा। -भग० २५ । उ ४ । सू ८७ । पृ० ८६८-६९ टोका-परमाणुपोग्गलेत्यादि। यदा बहवोऽणवः समसंख्या भवन्ति तदा सार्द्धाः यदास्तु विषमसंख्यास्तदा अन ः। संघातभेदाभ्यामनवस्थितस्वरूपत्वात्तेषामिति । जब परमाणुओं का समूह होता है तब उनकी संख्या बहुत होती है। और वह संख्या सम होती है तो वे सार्ध होते हैं और यदि संख्या विषम होती है तो वे अनर्द्ध होते हैं। परमाणु की संख्या संघात और भेद के कारण अवस्थित नहीं होती है इसलिए वे कभी समसंख्यक हो जाते हैं तथा कभी विषम-संख्यक हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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