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________________ ( 30 ) पुद्गल में उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य पुद्गल शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। द्रव्यार्थतया शाश्वत है और पर्याय रूप से अशाश्वत । परमाणु पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से अचरम ( अंतिम नहीं ) है । यानी परमाणु संघात रूप से परिणत होकर भी पुनः परमाणु बन जाता है, अतः द्रव्यत्व की दृष्टि से चरम –अन्तिम ( Ultimate ) नहीं है । क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से चरम भी होता है और अचरम भी। पुद्गल की द्विविधा परिणति पुद्गल की परिणति दो प्रकार की होती है-- .... १- सूक्ष्म और २- बादर-स्थूल । परमाणु परमाणु रूप में और स्कंध स्कंध रूप में रहे तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यातकाल तक रह सकते हैं। बाद में तो उन्हे बदलता ही पड़ता है। यह इनकी कालसापेक्ष स्थिति है। क्षेत्र सापेक्ष स्थिति -परमाणु और स्कंध में एक क्षेत्र में रहने की स्थिति भी यही है । परमाणु स्कंध रूप में परिणत होकर फिर परमाणु बनने में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यातकाल लग जाता है और द्वयणुकादि स्कंधों के परमाणु रूप में और व्यणुकादि स्कंध रूप में परिणत होकर फिर मूल में आने में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक अनंतकाल लगता है। पुद्गल के प्रकार पुदगल द्रव्य के स्कंध आदि चार प्रकार के होते हैं एक परमाणु अथवा स्कंध जिस आकाशप्रदेश में थे और किसी कारणवश यहाँ से चल पड़े, फिर आकाशप्रदेश में उत्कृष्टतः अनंत काल के बाद और जघन्यतः एक समय के बाद ही आ पाते हैं। परमाणु आकाश के एक प्रदेश में ही रहते हैं। स्कंध के लिए यह नियम नहीं है। वे एक, दो, तीन, संख्यात व असंख्यात प्रदेशों में रह सकते हैं। यावत् समूचे लोक तक भी फैल जाते हैं। समूचे लोक में फैल जाने वाला स्कंध अचित्त महास्कंध कहलाता है । पुद्गल का अप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व १-द्रव्य की अपेक्षा से स्कंध सप्रदेशी होते हैं। २ क्षेत्र की अपेक्षा से स्कंध सप्रदेशी भी होते हैं और अप्रदेशी भी। जो एक आकाश प्रदेशावगाही होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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