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________________ पुद्गल-कोश १८५ जिस प्रकार तिक्तरसपर्याय रूप से एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है वैसे ही कटु-कषायआम्ल-मधुर रसपर्याय रूप से षट् स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है। एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से कर्कश स्पर्श पर्याय रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो षट्स्थान न्यून है । यदि अधिक है तो षट्स्थान अधिक है । जिस प्रकार कर्कश स्पर्श पर्याय रूप से एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है वैसे ही मृदु-गुरु-लघुशीत-उष्ण-स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श पर्याय रूप से षट् स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है। अत: एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गलों में अनंत पर्याय होते हैं । जिस प्रकार एक गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल एक गुण कृष्णवर्णवाले पुदगल से द्रव्य रूप से तुल्य है, प्रदेश रूप से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है, अवगाहन रूप से चतुःस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है । स्थिति रूप से चतुःस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है। कृष्णवर्ण पर्यायरूप से तुल्य है ; नील-रक्त-पीत-शुक्लवर्ण पर्याय रूप से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है। गंध-रस-स्पर्श पर्याय रूप से षटस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है वैसे ही दो गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल दो गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से यावत् दस गुण कृष्ण वर्णवाले पुद्गल से द्रव्य रूप से तुल्य है, प्रदेश रूप से षट्स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है, अवगाहन रूप से चतु.स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है । कृष्णवर्ण पर्याय रूप से तुल्य है । नील-रक्त-पीत-शुक्लवर्ण पर्याय रूप से षट् स्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है। गंध-रस-स्पर्श पर्याय रूप से षटस्थान न्यूनाधिक है अथवा तुल्य है । संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गलों में अनंतपर्याय होती है। संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से द्रव्य रूप से तुल्य है। संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुदगल से प्रदेश रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो षट्स्थान न्यून है। यदि अधिक है तो षट्स्थान अधिक है । संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल संख्यात गुण कृष्णवर्णवाले पुद्गल से अवगाहन रूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो चतुःस्थान न्यून है । यदि अधिक है तो चतु:स्थान अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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