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________________ पुद्गल-कोश १५५ दो प्रकार से पुद्गलों का भेदन होता है अर्थात् पुद्गल अलग होते हैं- स्वयं से - स्वाभाविक रूप से अथवा पर- प्रयोग से । - १२.०६ परिशटन- परिपतन- विध्वंसन दोहि ठाणेह पोग्गला परिसडंति, तंजहा - सई वा पोग्गला परिसŚति परेण वा पोग्गला परिसाडिज्जंति, एवं परिवडंति, विद्ध संति । - ठाण० स्था २ । उ ३ । सू ८२ टीका - परिपतंति पर्वतशिखरादेरिवेति, परिशटन्ति कुष्ठादेनिमित्तादङ्गुल्यादिवत्, विध्वस्यन्ते – विनश्यन्ति घनपटलवदिति । दो प्रकार से पुद्गलों का परिशटन, परिपतन तथा विध्वंसन होता है - स्वयं से अथवा पर से । जैसे— कुष्ठ आदि के कारण अंगुली गल जाती है वैसे पुद्गलों का परिशटन होता है । जैसे - पर्वत के शिखर से वस्तु गिरती है वैसे पुद्गल का परिपतन होता है । जैसे – घन - वादल बिखर जाते हैं वैसे पुद्गल का विध्वंसन होता है । १२.०७ क्रिया १२०७१ सक्रियत्व (क) आ आकाशादेव धर्मादीनि निष्क्रियाणि भवन्ति । पुद्गलजीवास्तु क्रियावन्तः क्रियेति गतिकर्माह । -तत्त्व अ ५ । सू ६ । भाष्य चलिदा हु । हु पदेसा ॥ te ) पोग्गलदव्वम्हि अणू संखेज्जादी हवंति चरिममहक्खंधम्मि व चलाचला होंति Jain Education International - गोजी ० (ग) जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । पुग्गलकरणा जीवा बंधा खलु कालकरणा दु ॥ ० गा ५९२ - पंच० गा ९८ । पृ० १५६ जय टीका - जीवाः पुद्गलकाया “सह सक्किरिया हवंति" सक्रिया भवंति । x x x । खंदा' स्कंदा: स्कंदशब्देनात्र स्कंदाणुभेदभिन्ना द्विधा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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