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________________ ( 22 ) नोट-आचार्य भिक्षु ने तेरह द्वार के आठवें भाव द्वार में पुद्गलास्तिकाय को अनादि परिणामिक भाव में भी ग्रहण किया है। .: रूपिषु तु · द्रव्येषु आदिमान् परिणामाऽनेकविधः । -तत्त्व० अ५ । सू ४३ का भाष्य पुद्गल का आदिमान परिणाम अनेक प्रकार का है। नोट-पुद्गल परमाणु स्वतन्त्रता में गति तथा अगुरुलघु-यह दो परिणाम नहीं करेगा। स्वलक्षणं हि लोकस्य षड्द्रव्यसमवायात्मकत्वं, अलोकस्य केवलं आकाशात्मकत्वम्। -प्रवचनसार अ २ । गा ३६ की प्रदीपिका वृत्ति गोयमा ! अलोए झुसिर गोलसंठिए पण्णत्ते। -भग० श ११ । उ १० । सू १० सम्पूर्ण विश्व गोलाकार है। अलोक मध्य में पीले गोले की तरह है। पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः। -तत्त्वराज० पृ० १९० पूर्ण होना अर्थात् मिलना, बद्ध होना, गलना अर्थात् पृथक् होना-विछुड़ना जो मिले तथा जुदा हो वह पुद्गल । पूरणात् गलनात् इति पुद्गलाः परमाणवः । -~-न्यायकोष पृ. ५०२ पुद्गल परमाणु मिलते हैं तथा विलय होते हैं । शरीरवाङ मनः प्राणपानाः पुद्गलानाम: सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च । -तत्त्व० अ ५ । सू १९, २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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