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________________ १४६ पुद्गल-कोश स्पर्श और संस्थान भेद से ) अनेक रूपवाले परिणाम रूप में परिणत होता है तथा होगा और उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण होने पर वह पुद्गल एक रूपवाला होता है और होगा। यहाँ 'पुद्गल' शब्द से परमाणु और स्कंध दोनों का ग्रहण करना चाहिए । 'समय लुक्खी' अर्थात् एक समय तक रूक्ष स्पर्शवाला रहा तथा 'समयं अलुक्खी' अर्थात् एक समय तक अरूक्ष-स्निग्ध स्पर्शवाला रहा। ये दोनों पद परमाणु और स्कंध दोनों में संभव हैं। परमाणु में भी भिन्न समय में रूक्ष स्पर्श और भिन्न समय में स्निग्धस्पर्श पाया जा सकता है। लेकिन तीसरा पद-यथा - एक समय में रूक्ष और स्निग्ध दोनों स्पर्शवालायह पद केवल स्कंध की अपेक्षा जानना चाहिए। क्योंकि द्वयणुकादि स्कंध का एक देश रूक्ष और एक देश स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है। इस प्रकार द्वयणुकादि स्कंध में- युगपद् रूक्ष और स्निग्ध स्पर्श संभव है। अस्तु वह (परमाणु या स्कंध ) अनेक वर्णादि परिणाम में परिणत होता है और फिर एक वर्णादि परिणाम में परिणत होता है। अर्थात् एक वर्णादि परिणाम के पहले प्रयोगकरण द्वारा अथवा विस्रसाकरण द्वारा अनेक कृष्ण नीलादि वर्ण भेद से अनेक रूप में तथा अनेक गंध, रस, स्पर्श और संस्थान भेद से अनेक अवस्था में परिणत होता है। इस प्रकार पुद्गल अतीतकाल में अनेक वर्णादि परिणाम में परिणत हुआ और उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण होने पर वह पुद्गल एक वर्णवाला और एक रूप वाला हुआ था। परमाणु पुद्गल मात्र समय भेद से अनेक वर्णादि रूप से परिणत हो सकता है परन्तु स्कंध समय भेद से या युगपद् भी अनेक वर्णादि रूप से परिणत हो सकता है । उस परमाणु या स्कंध का जब अनेक वर्णादि परिणाम निर्जीर्ण-क्षीण हो जाता है तब एक वर्णपर्याय में परिणत हो जाता है। इसी प्रकार गंध-रस-स्पर्श पर्याय के विषय में भी जानना चाहिए । यहाँ भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यत्काल - इन तीनों काल संबंधी प्रश्नोत्तर हैं। इसी प्रकार स्कंध के विषय में भी प्रश्नोत्तर किए गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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