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________________ ( 20 ) का करोंत आदि से भेद करना उत्कर है। जौ और गेहूँ आदि का आटा या सत्तू आदि चूर्ण है। घट आदि के टुकड़े-टुकड़े हो जाना खण्ड है। उड़द और मूगादि का दालादि चूणिका है। मेघ, भोजपत्र, अभ्रक और मिट्टी आदि की तहें निकलना प्रतर है। और गरम लोहे आदि के मारने पर फुलिगे निकलना अणुचटन है। कहा है चहिं अस्थिकाएहि लोगे फुडे, पन्नत्त तंजहा-धम्मत्थिकाएणं, अधम्मस्थिकाएणं, जीवत्थिकाएणं, पुग्गलत्थिकाएणं । -ठाण० स्था ४ । उ ३ । सू ४९३ अर्थात् चार अस्तिकाय लोक का स्पर्श करते हैं-यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय तथा पुद्गलास्तिकाय । जीव और पुद्गल ( अजीव ) इस स्थूल जगत के दो मूल तत्त्व है । पुद्गल के तीन प्रकार है--१) अष्ट स्पर्शी-स्थूल अजीव जगत्-२) चतुस्पर्शी कर्म, मन, वचन व श्वासोच्छ्वास वर्गणा । ३) द्विस्पर्शी परमाणु । पुद्गल में संहनन ( शारीरिक अस्थि संरचना ) व संस्थान ( आकृति ) दोनों होते हैं। यद्यपि परमाणु का कोई संस्थान नहीं होता है। ये दोनों जीव गृहीत शरीर रूप में परिणत पुद्गल विशेष में माना गया है। संस्थान शरीर के अतिरिक्त पुद्गल में भी होता है। उसका स्वरूप भिन्न है। शरीरमुक्त जीव के दोनों नहीं होते हैं। भाषा के पुद्गल पूरे लोक में फैल जाते हैं। इस सन्दर्भ में आकाशवाणी व दूरदर्शन प्रसारण महत्वपूर्ण है। सिद्धों की अफूसमाणगति-अस्पृश्यमान गति होती है। स्निग्ध व रूक्ष से विद्युत पैदा होता है। कहा है अणुखंधप्पेण दु, पोग्गलदन्वं हवेइ दुबियप्पं । खंधा दु छप्पयारा, परमाणु चेव दुवियप्पो॥ -नियम० अधि २ । गा १ पुद्गल द्रव्य के दो भेद है-एक अणु, दूसरा स्कंध। स्कंध के छः प्रकार हैं और परमाणु के दो प्रकार हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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