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________________ १२४ पुद्गल-कोश अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य हैं । ३ अथवा बहुवचन की अपेक्षा परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कंध अनानूपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य हैं । ४ अथवा एकवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध, परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कंध आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य हैं । १ अथवा एकवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध, परमाणु पद्गल तथा बहुवचन की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध एक आनुपूर्वी, एक अनानुपूर्वी तथा बहुत से अवक्तव्य द्रव्य हैं । २ अथवा एकवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध बहुवचन की अपेक्षा परमाणु पुद्गल तथा एकवचन को अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध - एक आनुपूर्वी, बहुत से अनानुपूर्वी तथा एक अवक्तव्य द्रव्य है । ३ अथवा एकवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध तथा बहुवचन की अपेक्षा परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कंध - एक आनुपूर्वी बहुत से अनानुपूर्वी तथा बहुत से अवक्तव्य द्रव्य हैं । ४ अथवा बहुवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध तथा एकवचन की अपेक्षा परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कंध - बहुत से आनुपूर्वी एक अनानुपूर्वी तथा एक अवक्तव्य द्रव्य है । ५ अथवा बहुवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध, एकवचन की अपेक्षा परमाणु पुद्गल तथा बहुवचन की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध बहुत आनुपूर्वी एक अनानुपूर्वी तथा बहुत से अगक्तव्य द्रव्य हैं । ६ अथवा बहुवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध, परमाणु पुद्गल और एकवचन की अपेक्षा द्रिप्रदेशी स्कंध - बहुत से आनुपूर्वी, बहुत से अनानुपूर्वी और एक अवक्तव्य द्रव्य है । ७ अथवा बहुवचन की अपेक्षा तीन प्रदेशी स्कंध, परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कंध -- बहुत से आनुपूर्वी, आनानुपूर्वी तथा अवक्तव्य द्रव्य हैं । (घ) से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी ? संगहस्स अणोवणिहिया दव्वाणुपुव्वी पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा - अट्ठपयपरूवणा १ भंगसमुक्कित्तणया २ भंगोवदंसणया ३ समोयारे ४ अणुगमे ५ । सेकि संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया तिपएसिया आणुपुव्वी । चउप्पएसिया आणुपुव्वी जाव दसपएसिया आणुपुव्वी संखिज्जएसिया आणुपुब्वी असं खिज्जपएसिया आणुपुव्वी अणतपदेसिया आणुपुथ्वी, परमाणुपोग्गला अणाणुयुग्वी, दुपदेसिया अवत्तव्वए । - अणुओ ० सू ११५-११६ । पृ० ११०० संग्रहनय की अपेक्षा अनुपनिधि द्रव्यानुपूर्वी पाँच प्रकार की कही गयी है- यथा अर्थपदप्ररूपणा, भंगसमुत्कीर्तना, भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम । संग्रहनय की अपेक्षा अर्थपदप्ररूपणा इस प्रकार है- तीन प्रदेशी स्कन्ध, चतु:प्रदेशी स्कन्ध, यावत् दसप्रदेशी स्कन्ध, संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, असंख्यात प्रदेशी स्कंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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