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________________ ११८ पुद्गल - कोश जिस कारण से वहाँ और अन्यत्र द्रव्यास्थान, क्षेत्रावस्थान तथा अवगाहनावस्थान में उनके के ही पर्याय हैं अतः द्रव्यस्थानायु की अपेक्षा भावस्थानायु असंख्यगुण है । बंध और अनुलोम के जिस कारण से तत्र और अन्यत्र प्रत्येक से संबद्ध है । कारण द्रव्यादि को अन्यथा रूप में रखा गया है । अतः जिस कारण से वहाँ और अन्यत्र क्षेत्र में, वहाँ और अन्यत्र अवगाहना में, वहाँ और अन्यत्र द्रव्य में - सब जगह चिरावस्थायी होने के कारण वे ही पर्याय प्राप्त होते हैं अतः द्रव्यकाल पर्यायों क ही अवस्थानकाल है और द्रव्यास्थानायु की अपेक्षा भावस्थानायु असंख्यगुणी है ॥ १२ ॥ आह अणेगतोऽयं दव्वोवरिमे गुणाणवत्थाणं । गुणविपरिणाममि अ, दव्वविसेसों अणेगंतो ॥१३॥ अभयदेवसूरि टीका - द्रव्यविशेषो द्रव्यविपरिणामः । रत्नसिंहरि टीका- नायमेकान्तो यद्व्योपरमे गुणानामवस्थानं विनाशस्यापि दर्शनाद्गुणविनाशे च द्रव्यविशेषो द्रव्यविपरिणामोऽवश्यंभावी विनष्टेवपि गुणेषु द्रव्यस्य तववस्थस्य दर्शनात् । विप्परिणमंमि दव्वे, कम्मिवि गुणपरिणई भवे जुगवं । कम्मि वि पुण तदवत्थेवि होइ गुणविप्परीणामो ॥१४॥ रत्नसिंहरि टीका - कस्मिन्नपि द्रव्ये स्वपरमाणुविघटनेनापरमाणुसंघट्टनेन वा विपरिणते द्रव्ये तुल्यकालं प्राक्तनपरिणामादीनां गुणानामपि विपरिणतिर्भवति । कस्मिन्नपि पुनद्रव्येऽपरपरमाणु संगमस्वपरमाणुविगमाभावात्तदवस्थेऽपि गुणपरिणामो गुणविनाशो भवति, घटद्रव्ये तदवस्थेऽपि पाकेन प्राक्तनश्यामरूपादिगुणनाशदर्शनात् । भण्णइ सच्वं कि पुण, गुणबाहुल्ला न सव्वगुणनासो । बव्वस्स तदन्नत्तवि बहुतराण गुणाण ठिई ॥१५॥ रत्नसिंह सूरिटीका - द्रव्यान्यथात्वे गुणान्यथात्वं द्रव्यतादवस्थ्ये गुणान्यथात्वं च तदक्तं तत् सत्यम्, अनयोरपि भङ्गकयोः कथंचिद्घटनात्कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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