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________________ पुद्गल-कोश रत्नसिंहसूरि टीका -अवगाहनायां नियतप्रदेशव्यापितायां, अक्रियायां चागमनरूपायामबद्धा नितया नियन्त्रिता क्षेत्राद्धा एकक्षेत्रावस्थानकाली विवक्षितावगाहनासद्भाव एव अक्रियासद्भाव एव च क्षेत्राद्धाया भावात् । उक्तव्यतिरेके चाभावात् । अवगाहनाद्धा तु न क्षेत्रमावे नियता, क्षेत्राद्धाया अभावेऽप्यवगाहनाद्धाया भावादिति । अथ निगमनम् जम्हा तत्थन्नत्थ य, सच्चिअ ओगाहणाभवे खित्ते। तम्हा खेत्तद्धाओऽवगाहणऽद्धा असंखगुणा ॥५॥ अभयदेवसूरि टीका-अथ द्रव्याऽऽयुर्बहुत्वं भाव्यते। रत्नसिंहसूरि टीका-यस्मात्तत्र विवक्षितेऽन्यत्र च विवक्षितादितरतस्मिंश्च क्षेत्रे सैव प्राक्तनक्षेत्रसंबद्ध वावगाहना भवेत्, तस्माक्षेत्राद्धाया सकाशादवगाहनाद्धाऽसंख्यातगुणेति । ___ एक स्थल से अन्य क्षेत्र में गए हुए पुद्गल भी उसी मान में वहां लम्बे काल तक रहते हैं। यदि अवगाहना का नाश हो जाता है तो क्षेत्र-भिन्नता स्फुट होती है । पुदगल स्कंध के अन्य क्षेत्र में जाने पर भी उसी प्रमाण में वही अवगाहना बहुत काल तक रहती है। इसका अभिप्राय यह है कि विवक्षित क्षेत्र में जितने आकाश प्रदेशों में परमाणु-स्कंध अवस्थित था उतने प्रमाण प्रदेश में व्यापकता अन्य क्षेत्र में जाने पर भी प्राप्त होती है। अवगाहना का नाश होने पर पुनः क्षेत्र का अन्यत्व स्फुट हो जाता है। अवगाहना का नाश दो कारणों से होता है-पहला कारण यह है-परमाणु-स्कंध-संकोच से, दूसरा कारण है-स्तोक प्रदेश के अवस्थान में विकास से या अधिक प्रदेश में अवस्थान से । यहां पर पूर्वाधं से-क्षेत्रकाल से अधिक अवगाहनाकाल होता है तथा उत्तरार्ध से अवगाहनाकाल से क्षेत्रकाल अधिक नहीं होता है । यह कैसे कहा गया है ? उत्तर में कहा जाता है कि-पुद्गलों का क्षेत्रावस्थान काल-अमुक क्षेत्र में नियत रूप से स्थित रहने का काल-अवगाहना और क्रियारहितपन से अवबद्ध है अर्थात् पुदगल अमुक स्थल में नियत तभी रह सकता है जब वे अमुक अवगाहना में होते हैं और तब वह निष्क्रिय होता है अतः पुद्गलों का एकत्रावस्थान अवगाहना से और निष्क्रियपन से अवबद्ध है परन्तु उससे विपरीत अर्थात् अवगाहनाकाल-क्षेत्रावस्थान काल मात्र में संबद्ध नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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