SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल-कोश एक गुण काला गुणस्थानक, द्विगुण काला गुणस्थानक यावत् अनंतगुण काला गुणस्थानक-इन गुणस्थानकों में एक-एक गुणस्थानक में काल की अपेक्षा अप्रदेशी पुदगलों की एक-एक राशि होती है। गुणस्थानकों के अनंत होने के कारण कालतः अप्रदेशी पुद्गलों की राशि भी अनंत होती है। इसी प्रकार नीलादि अन्य गुणों में भी कालतः अप्रदेशी पुद्गलों की राशि का विवेचन कर लेना चाहिए । रत्नसिंहसूरि का कथन है कि प्रत्येक गुणस्थानक में अनंत पुद्गल होते हैं । आहाणंतगुणत्तणमेवं कालापएसयाणं ति। जं अगंतगुणट्ठाणेसु होति रासी वि हु अणंता ॥७॥ .. अभयदेवसूरि टीका- 'एवं' इति यदि प्रतिगुणस्थानकं कालाऽप्रदेशराशयोऽभिधीयन्ते इति।। रत्नसिंहसूरि टोका-एवमिति यदि प्रतिगुणस्थानकं कालाप्रदेशराशयोऽभिधीयन्ते, ततो भावाप्रदेशेभ्यः कालाप्रदेशा अनन्तगुणाः प्राप्नुवन्ति । यतोऽनन्तेष्वेकगुणकालकद्विगुणकालकत्रिगुणकालकादिष्वनन्तगुणकालकपर्यवसानेषु गुणस्थानकेषु राशयोऽप्यनन्ता भवन्ति, अथ चाऽसंख्यातगुणत्वमिष्यत इति । इस प्रकार एक गुण कालादि रूप गुणस्थानों के मध्य एक-एक गुणस्थान में काल से अप्रदेशी पुद्गलों की एक-एक राशि बनाई जाय अर्थात् एक गुण काला आदि गुणस्थानों के मध्य एक-एक गुणस्थान में काल से अप्रदेशी पुद्गलों की एक-एक राशि होती है। इस प्रकार होने से गुणस्थान की राशि के अनंतपन को लेकर काल से अप्रदेशी पुद्गलों की अनंत राशि होती है। यद्यपि शास्त्र में काल से अप्रदेशी पुद्गलों का असंख्यगुणपन कहा गया है। अर्थात् इस प्रकार यदि प्रति गुणस्थानक में काल से अप्रदेशी राशि का प्रतिपादन किया जाता है तो भाव से अप्रदेशी पुदगलों से काल से अप्रदेशी पुद्गल अनंतगुण हो जाते हैं क्योंकि अनंत गुणस्थानकों में राशि भी अनंत होती है। भण्णइ एगगुणाणवि अणंतभागम्मि जं अणंतगुणा। तेणाऽसंखगुण च्चिय हवंति णाणतगुणियत्तं ॥८॥ अभयदेवसूरि टीका-अयमभिप्रायः- यद्यपि अनंतगुणत्वादीनाम अनंतराशयः, तथापि एकगुणकालत्वादीनाम् अनंतभाग एव ते वर्तन्ते- इति न तवारेण कालाप्रदेशानाम् अनंतगुणत्वम्, अपि तु असंख्यातगुणत्वमेव इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy