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________________ प्रकाशकीय जैन दर्शन अत्यन्त सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में इसका क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन एवं इसे समझने में कठिनाई होती है । कई विषय विवेचना की दृष्टि से अपूर्ण व अधूरे होने के कारण भलीभांति समझ में नहीं आते । अर्थ बोध की इस दुर्गमता के कारण जैन-अर्जन दोनों प्रकार के विद्वान जैन दर्शन के अध्ययन में सकुचाते हैं । क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है, ऐसा जैन विद्वानों का मानना है । जैन दर्शन समिति अपने स्थापना काल से ही कोश निर्माण की परिकल्पना को साकार करने में लगी है। समिति ने इससे पूर्व क्रिया कोश, मित्थ्यात्वी का आध्यात्मिक विकास, वर्धमान जीवन कोश ( तीन खण्डों में ) एवं योग कोश ( दो खण्डों में ) आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं । लेश्या कोश का प्रकाशन इस कोश परिकल्पना के सूत्रधार जैन तत्त्ववेत्ता स्व० मोहनलालजी बांठिया ने समिति स्थापना के पूर्व श्रीचंदजी चोरड़िया के सहयोग से स्वयं के खर्चे से प्रकाशित किया था । विद्वानों ने व शोधकों ने इन प्रयासों की मुक्त कंठ से सराहना की है । स्व० मोहनलालजी बांठिया संस्था के प्राण थे । वे स्वयं तत्त्ववेत्ता श्रावक थे । उनके प्रयासों से समिति इतना महत्वपूर्ण कार्य कर पायी। उन्होंने ग्रन्थों-कोशों की प्रारम्भिक तैयारी कर ली । श्री श्रीचंदजी चोरड़िया उनके अनन्य सहयोगी रहे । स्व० मोहनलालजी बांठिया के निधन के पश्चात् श्री श्रीचंदजी चोरड़िया ने अवशिष्ट कार्य को आगे बढ़ाया। जैन तत्त्व की गम्भीर जानकारी, प्राकृत व संस्कृत भाषा पर अधिकार रखने वाले विद्वानों को अंगुलियों पर गिना जा सकता है । इस दृष्टि से श्री श्रीचंदजी चोरड़िया का यह प्रयास स्तुत्य एवं सराहनीय है । प्रस्तुत पुद्गल कोश में पुद्गल सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित करके सम्पादित की गई है । मूल पाठ अनेक आगमों से एकत्रित किये गये हैं । टिप्पणी तथा हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया गया है । पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने कोश के कार्य को आगम सम्पादन के पूरक कार्य के रूप में स्वीकार किया था । अपने जीवन काल में आचार्य श्री तुलसी का मार्गदर्शन भी समिति को सदैव प्राप्त हुआ था । समिति के उत्साही सदस्यों, शुभचिन्तकों के साहस और निष्ठा का उल्लेख करना मेरा कर्तव्य है । प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोगी रहे, प्रत्येक व्यक्ति के प्रति हम बाभारी हैं । आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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