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________________ पुद्गल - कोश ७१ वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आयतसं ठाणपरिणया | २० | जेवणओ हालिद्दवण्णपरिणया ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणया वि दुब्भिगंधपरिणया वि, रसओ तित्तरसपरिणया वि कडुयरसपरिणया कि कसायरसपरिणया वि अंबिलरसपरिणया वि महुररसपरिणया वि, फासओ कक्खडफासपरिणया वि मजयफासपरिणया वि गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणया वि सीयफासपरिणया वि उसिणफासपरिणया वि निद्धफासपरिणया वि लुक्खफासपरिणया वि, संठाणओ परिमंडलसंठाप परिणया वि वट्टसं ठाणपरिणया वि तंससं ठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आयतसं ठाणपरिणया वि ॥२०॥ जे वण्णओ सुक्किलवण्णपरिणया ते गंधओ सुभिगंधपरिणया वि दुभिगंधपरिणया वि, रसओ तित्तरसपरिणया वि कडुयरसपरिणया वि कसायरसपरिणया वि अंबिलरसपरिणया वि महररसपरिणया वि, फासओ कक्खडफासपरिणया वि मउयफासपरिणया वि गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणया वि सोयफासपरिणया वि उसिणफासपरिणया वि निद्धफासपरिणया वि लुक्खफासपरिणया वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणया वि वट्टसंठाणपरिणया वि तंससंठाणपरिणया वि चउरंससंठाणपरिणया वि आययसं ठाणपरिणया वि ।२०।१०० जो पुद्गल काले वर्ण का है उसमें गंध, रस, स्पर्श को भजना है । अर्थात् जो पुद्गल वर्ण से काले वर्ण रूप में परिणत होते हैं वे गंध से सुरभि - सुगंध रूप में और दुरभि - दुर्गन्ध रूप में भी परिणत होते हैं रस से तिक्त रस रूप में, कटुरस रूप में, कषाय रस रूप में, आम्ल रस रूप में और मधुर रस रूप में भी परिणत होते हैं । स्पर्श से कर्कण स्पर्श रूप में, मृदु स्पर्श रूप में, गुरु स्पर्श रूप में, लघु स्पर्श रूप में, शीत स्पर्श रूप में, उष्ण स्पर्श रूप में, स्निग्ध स्पर्श रूप में रूक्ष स्पर्श रूप में भी परिणत होते हैं । संस्थान से परिमंडल संस्थान रूप में, वृत्त - वर्तुल संस्थान रूप में, त्रिकोण संस्थान रूप में, चतुष्कोण संस्थान रूप में और आयत संस्थान रूप में भी परिणत होते हैं । इस प्रकार सर्वं मिलकर बीस भंग कृष्ण वर्ण रूप में परिणत हुए पुद्गलों के होते हैं । [२०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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