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________________ पुद्गल-कोश परमाणु पुद्गल की एक परिभाषा परमाणुपुद्गल द्रव्य है और इसका नाम भी द्रव्यपरमाण है। औधिक पुद्गल की तरह शाश्वत और अवस्थित द्रव्य है । ___ द्रव्य की अपेक्षा परमाणुपुद्गल अनन्त है, पुद्गल की तरह क्षेत्र की अपेक्षा लोकाकाश में है, काल की अपेक्षा त्रिकालवर्ती है। परमाणुपुद्गल अतीत अनन्त शाश्वत काल में था, यह वर्तमान शाश्वत काल में है, यह अनन्त शाश्वत भविष्यत् काल में रहेगा। यह द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है, वर्ण-गंध-रस-स्पर्श भावों की अपेक्षा से अशाश्वत है। भाव को अपेक्षा परमाणु पुद्गल में एक वर्ण, एक गंध, एक रस तथा दो स्पर्श हैं अर्थात परमाणु में पांच वर्षों में से कोई एक वर्ण होता है, दो गंधों में से कोई एक गंध होती है. पाँच रसों में से कोई एक रस होता है । यह द्विस्पर्शी है अर्थात् रूक्ष, स्निग्ध, शीत और उष्ण-इन चार स्पर्शों में से परमाणु में कोई दो अविरोधी स्पर्श होते हैं। परमाणु में रूक्ष-शीत या रूक्ष-उष्ण या स्निग्ध-शीत या स्निग्ध-उष्ण स्पर्श होता है। परमाणुपुदगल जो द्रव्य की अपेक्षा अप्रदेशी है, वह क्षेत्र की अपेक्षा नियमतः अप्रदेशी है अर्थात् यह एक आकाश प्रदेश का ही अवगाहन करता है ; काल की अपेक्षा यह कदाचित् अप्रदेशी होता है, कदाचित् सप्रदेशी होता है, अर्थात् एक समय की स्थितिवाला भी होता है, अनेक समय की स्थितिवाला भी होता है ; भाव की अपेक्षा कदाचित् अप्रदेशी है, कदाचित् सप्रदेशी है अर्थात् एक अंश गुणवाला भी होता है, अनेक अंश गुणवाला भी होता है । ___ परमाणुपुद्गल इतना सूक्ष्म होता है कि छद्मस्थ तथा अवधिज्ञानी इसे देख नहीं सकते हैं केवल परमावधिज्ञानी तथा केवलज्ञानी इसे जानते और देखते हैं । परमाणुपुद्गल तलवार की धार या क्षुर की धार (उस्तुरे की धार ) पर रह सकता है, उस तलवार की धार या क्षुर की धार पर अवस्थित परमाणु पुद्गल का छेदन-भेदन नहीं होता है। परमाणुपुद्गल अग्निकाय के मध्य में प्रविष्ट होकर भी नहीं जलता है। परमाणुपुद्गल 'पुष्कर संवर्तक' नामक महामेघ के मध्य में प्रविष्ट होकर भी गीलेपन को प्राप्त नहीं होता है । परमाणुपुद्गल गंगा महानदी के प्रतिस्रोतप्रवाह में प्रविष्ट होकर भी प्रतिस्खलित नहीं होता है। परमाणुपुद्गल उदगावर्त या उदकबिन्दु में प्रविष्ट होकर भी नष्ट नहीं होता है। परमाणुपुद्गल अच्छेद्य है, अभेद्य है, अदाह्य है, अग्राह्य है। परमाणुपुद्गल अनर्घ है, अमध्य है, अप्रदेशी है परन्तु सार्ध नहीं है, समध्य नहीं है, सप्रदेशी नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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