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________________ २४ पुद्गल-कोश .०४ ६६ पोग्गलपडिधाये ( पुद्गलप्रतिघात) -ठाण• स्था ३ । उ ४ । सू २११ । पृ० २१९ टोका-पुद्गलानाम्-अण्वादीनां प्रतिघातो-गतिस्खलनं पुद्गलप्रतिघातः। पुद्गलों की गति का अवरोध-पुद्गलप्रतिघात । पुद्गलों का परस्पर में प्रतिघात होता है-इससे उनकी गति का अवरोध भी होता है। .०४.६७ पोग्गलपरिणामा (पुद्गलपरिणामक ) -भग• श १४ । उ ६ । प्र१ । पृ०७०१ पुद्गलों का परिणमन करनेवाला। यहाँ नारकी जीवों का विवेचन है। नारकी जीव जिन पुद्गलों का आहार करते हैं उन आहार किये हुए पुद्गलों का परिणमन भी करते हैं। अत: वे नारकी पुद्गलपरिणामक कहे जाते हैं। .०४.६८ पोग्गलपरिणामे (पुद्गलपरिणाम) -ठाण. स्था ४ । उ १ । सू २६५ । पृ. २२७ (पुद्गल अपने लक्षणगुणों को जड़ता तथा रूप को परित्याग किए बिना) जो पुद्गल अपने वर्ण, गंध, रस तथा स्पर्श गुणों-पर्यायों में परिणमन करे, वह पुद्गलपरिणाम । यथा एक गुण काले वर्ण से अनन्त गुण काले वर्ण पर्यन्त परिणमन करना अथवा काले वर्ण से नौलादि अन्य वर्गों में परिणमन करना। इसी प्रकार गंध, रस, तथा स्पर्श का परिणमन समझ लेना चाहिए। स्कंध रूप होने से संस्थान रूप परिणमन भी होता है। .०४.६९ पोग्गलपरियट्टे ( पुद्गलपरावर्त) -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू १९२ । पृ० २१६ पुद्गलपरावर्त-काल का एक प्रमाण है। टीका-पुद्गलानां-रूपिद्रव्याणामाहारकवजितानां औदारिकादिप्रकारेण ग्रहणतः एकजीवापेक्षया परिवर्तनं-सामस्त्येन स्पर्शः पुद्गल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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