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________________ पुद्गल-कोश २१ परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशी स्कंधपुद्गल यावत् अनन्तप्रदेशी स्कंधपुद्गल जो देशान्तर गति करते हैं वह पुद्गलगति । .०४ ५५ पोग्गलचयओ (पुद्गलचय ) -विशेभा० गा ३५२७ 'पोग्गलचयओं-पुद्गलों के इकट्ठा होने से। •०४.५६ पोग्गलजीवणिबद्धो ( पुद्गलजीवनिबद्ध ) -प्रव० अ २ । गा ३६ पुद्गल और जीव का संबद्ध होना या संयुक्त होना । पोग्गलजीवणिबद्धो धम्माधम्मत्थिकायकालड्डो। वट्ठदि आगासे जो लोगो सो सव्वकाले दु॥ जिस आकाश क्षेत्र में पुद्गल और जीव निबद्ध या संयुक्त होकर रहते हैं वह क्षेत्र धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और काल से भरा हुआ है। वही क्षेत्र अतीत, अनागत और वर्तमान, तीन कालों में 'लोक'-नाम से कहा जाता है । .०४.५७ पोग्गलजुडी (पुद्गलयुति) -षट् । खं ५। ५ । सू ८२ टीका । पु १३ । पृ० ३४८ वाएण हिंडिज्जमाणपण्णाणं व एक्कम्हि देसे पोग्गलाणं मेलणं पोग्गलजुडी णाम। वायु के कारण हिलने वाले पत्तों के समान एक स्थान पर पुद्गलों का मिलना पुद्गलयुति है। यहाँ पर युति शब्द का अर्थ केवल मात्र संयोग या समीपता है । .०४.५८ पोग्गलजोणिया ( पुद्गलयोनिक) -भग० श १४ । उ ६ । प्र १ । पृ० ७०१ टीका-पुद्गलाः शीताऽऽविस्पर्शा योनिः येषां ते तथा। शीताऽऽदियोनिजनितेषु। जिनकी योनि शीत तथा उष्ण स्पर्श वाले पुद्गलों की है ने पुद्गलयोनिक । अथवा जो जीव शीत या उष्ण पुद्गलों की योनि में उत्पन्न होते हैं वे पुद्गलयोनिक । .०४.५९ पोग्गल द्वितीया (पुद्गलस्थितिक) -भग० श १४ । उ ६ । प्र १ । पृ० ७०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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