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________________ पुद्गल-कोश १९ __ जो पौदगलिक द्रव्य का अन्तिम कारण है, सूक्ष्म और नित्य होता है, एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श वाला होता है तथा द्विप्रदेशी आदि स्कंधों का कारणभूत है वह परमाणुपुद्गल है। 'परमाणुपुद्गल' अर्थात् परम-पौद्गलिक द्रव्य का अन्तिम कारण है ; अणुयह सूक्ष्म होता है तथा जो पुद्गल द्वि-अणु आदि स्कंधों का कारणभूत है वह परमाणुपुद्गल । •०४४७ पुग्गललहुआ-(पुद्गललघुता) -अभिधा• भा ५ । पृ. ९६८ 'शरीरपुद्गलानाम् जाड्यापगमे' शरीर के पुद्गलों की जाड्य-जड़ता के हट जाने से पुद्गललघुता होती है । .०४.४८ पुग्गलवग्गणा (पुद्गलवगणा) -~-अभिधा० । भाग ५ । पृ० ९६८ पुदगलों की वर्गणा-पुद्गलों का समुदाय। समगुणवाले–समजाति वाले पुद्गलों की एक वर्गणा कही जाती है, यथा-परमाणुपुद्गलों की एक परमाणुपुद्गलवर्गणा। .०४.४९ पुग्गलविवागि(णो) (पुद्गलविपाको) -कर्म० भाग ५ । गा २१ । पृ० १८ टीका-x x x | "पुग्गलविवागि" त्ति पुद्गलेषु-शरीरतया परिणतेषु परमाणुविपाकः-उदयो यासां ताः पुद्गलविपाकिन्यः।xxx। शरीर रूप में परिणत परमाणुओं-पुद्गलों का उदय होकर विपाक होनापुद्गलविपाक। ___ जिन कर्मप्रकृतियों का पुद्गल रूप से विपाक होता है वे पुद्गलविपाकिनी प्रकृतियाँ । नामकर्म की ३६ प्रकृतियों का पुद्गलविपाक होता है। .०४ ५० पोग्गल (पुद्गल) -भग० श८ । उ १० । प्र ४५ । पृ० ५७४ जीव का एक अभिवचन पुद्गल भी है। जीवे वि x x x जीवं पडुच्च पोग्गले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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