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________________ १४ पुद्गल-कोश घ्राणपुद्गल अर्थात् वे पुद्गल जिनमें गंध-गुण की प्रधानता हो और जो घ्राणेन्द्रिय के द्वारा ग्रहण योग्य हों । यहाँ केवलसमुद्घात के समय में निर्जरित होने वाले निर्जरा पुद्गलों की सूक्ष्मता को घ्राण- पुद्गलों की सूक्ष्मता के उदाहरण से समझाया गया है । कहा गया है कि छद्मस्थ मनुष्य समुद्घात जनित निर्जरा के पुद्गलों के किंचित् वर्ण रूप से वर्ण को, गध रूप से गंध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्श रूप से स्पर्श को नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं । यदि कोई महानुभाव देवता विलेपन के सुगंधित द्रव्य से भरे हुए डिब्बे को खोलता है यावत् उस सुगंधित द्रव्य को तीन बार चुटकी बजाने जितने काल में इक्कीस बार सम्पूर्ण जंबुद्वीप की परिक्रमा करके जल्दी आवे उतने काल में सम्पूर्ण जंबुद्वीप उस सुगंधित द्रव्य से व्याप्त हो जाता है लेकिन जंबुद्वीप में स्थित छद्मस्थ मनुष्य उन घ्राण के पुद्गलों को किचित् वर्ण रूप से वर्ण को, गध रूप से गध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्शरूप से स्पर्श को नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं । प्रकार यहाँ सूक्ष्म-पुद्गलों का विवेचन किया गया है । इस .०४.२८ जइणसमुग्धायस चितकम्मपोग्गलमयं ( जेनसमुद्घातसचित्तकर्म पुद्गलमय ) - विशेभा० गा ६४४ टीका - जैनसमुद्घाते यः सचेतनजीवाधिष्ठितत्वात् सचित्तः कमवुद्गनमयो महास्कंधः । जैन समुद्घात में सचित्तकर्मपुद्गल महास्कंध भी होता है । अनुभावादि वाला अचित्त महास्कंध भी होता है । केवली समुद्घात में जीवाधिष्ठित अनंतानंत कर्म पुद्गलमय सचित्त महास्कंध भी होता है तथा अनंतानंत परमाणु पुद्गल के समूह से बना हुआ अचित्त महास्कंध भी होता है । दोनों महास्कंधों का क्षेत्र, काल तथा अनुभाव समान होता है । दोनों महास्कंध समुद्घात के चौथे समय में सम्पूर्ण लोक प्रमाण क्षेत्र में व्याप्त होते हैं तथा आठ समय पर्यन्त रहते हैं । पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस तथा चार स्पर्श से सोलह गुण रूप अनुभाव दोनों में समान होते हैं । समुद्घातगत कर्मपुद्गलमय महास्कंध जीवाधिष्ठित होने से सचित्त होता है । .०४.२९ जीवपोग्गलजुडी ( जीवपुद्गलयुति ) -षट्० Jain Education International उसके समान खं ० ०५ । ५ । सु ८२ टीका । पु १३ । पृ० ३४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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