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________________ पुद्गल-कोश __ औदारिक शरीर में वर्तता हुआ जीव औदारिक शरीर के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव से औदारिक शरीर रूप में जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे औदारिकपुद्गलपरावतं कहते हैं । .०४.१९ ओरालियसरीरपोग्गलाणं ( औदारिकशरीरपुद्गल ) .-षट् ० खं० ५। ६ । सू ४६ टीका । पु १४ । पृ० ४२ जो पुद्गल जीव के औदारिक शरीर रूप प्रयोग से परिणत हुए हैं, वे औदारिक शरीर पुद्गल । .०४ २० कम्मपोग्गलक्खंधो ( कर्मपुद्गलस्कंध ) षट् ० ख० ४ । २ । १२ । सू ४ टीका । पु १२ । पृ० ३७२ कर्म पुद्गलों का स्कंध- पिण्ड । .०४.२१ कम्मगपोग्गलपरियट्टनिब्वत्तणाकाल ( कार्मणपुद्गलपरिवर्तनिवर्तनाकाल ) -भग० श १२ । उ ४ । प्र ३० । पृ० ६६२ कार्मण पुद्गल परावर्त के निष्पन्न होने का काल, इसमें अनन्त उत्सपिणीअवसर्पिणी जितना काल लगता है। .०४.२२ कम्मपोग्गलपरियट्टभंतरे ( कर्मपुद्गलपरिवर्ताभ्यंतर ) -कसापा• गा २२ । टीका ५७५ । भाग ४ । पृ० २९७ कर्मपुद्गल परावर्त के भीतर । यथाटीका-xx x कम्मणिज्जरामोक्खेण आसण्णा कम्मपरमाणू अविण टुसंसकारत्तादो कम्मपोग्गलपरियट्टभंतरे लहुं कम्मभावेण परिणमंति।xxx। कर्म निर्जरा के द्वारा मुक्त होकर समीपवर्ती कर्मपरमाणु अविनष्ट संस्कार वाले हों तो वे कर्म-पुद्गलपरावर्त के भीतर अतिशीघ्र कर्म रूप से परिणत होते हैं । .०४.२३ कम्मापोग्गलपरियट्टे ( कार्मणपुद्गलपरावर्त) -भग• श १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६० कार्मण शरीर में वर्तता हुआ जीव कामण शरीर के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव से कार्मण शरीर रूप में जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे कार्मणपुद्गलपरावत कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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