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________________ ०३.०४ परकम ( पराक्रम) xx x वीर्य-पराक्रम x x x। -सिद्ध० अ६ । सू ६ । पृ० १६४ वीर्य और पराक्रम एकार्थवाची शब्द हैं । ०३.०५ चेट्ठा ( चेष्टा ) - पाहअ० ०३.०६ सत्ती (शक्ति) xxxशक्तिरुत्साहः x x x। -सिद्ध० अ६ । सू ६ । पृ० १६४ शक्ति और उत्साह समानार्थक है। ०३.०७ सामत्थय ( सामर्थ्य) xxx सामर्थ्य मतिशयवती चेष्टाxxx। -सिद्ध० अ६ । सू ६ । पृ. १६४ मन, वचन और काय की बलवती चेष्टा सामर्थ्य है। .०३ 'योग' के पर्यायवाची शब्द .०३.०८ पओग (प्रयोग) ___xxx प्रयोग इति प्रपूर्वस्य 'युजिरायोगे' इत्यस्य घअन्तस्य प्रयोगः, परिस्पन्दक्रिया आत्मव्यापार इत्यर्थः, अथवा प्रकर्षेण युज्यते-व्यापार्यते क्रियासु सम्बन्ध्यते वा साम्परारिकेर्यापथकर्मणा सहारमा अनेनेति प्रयोगःXXXI -पण्ण० प १६ । सू २०२ । टीका 'पओगे' त्ति प्रयोजनं प्रयोगः सपरिस्पन्द आत्मनः क्रियापरिणामो व्यापार इत्यर्थः, अथवा प्रकर्षेण युज्यते-संयुज्यते सम्बध्वतेऽननेति क्रियापरिणामेण कर्मणा सहात्मेति प्रयोगः। -सम० सम १५ । सू ७ । पृ० ४४ प्रयोग-परिस्पन्द क्रिया अर्थात् आत्मव्यापार । आत्मा का परिस्पन्दन युक्त क्रियापरिणाम या व्यापार प्रयोग है। अथवा जिस क्रियापरिणमन रूप व्यापार से आत्मा प्रकृष्टता से कर्मों से युक्त होता हो-संयुक्त होता हो या सम्बद्ध होता हो- उसको प्रयोग कहा जाता है। ०३.०९ व्यापार कर्तुमिच्छोः श्रुतार्थस्यः ज्ञानिनोऽपि प्रमादतः । विकलो धर्मयोगो यः स इच्छायोग उच्यते ॥ -योगस० गा २ टीका-xxx धर्मयोगो धर्मव्यापारः, यः इति योऽर्थः वन्दनाविषयः स इच्छायोग उच्यते ।-हरिभद्र -करण प्रवसा०-गा. ८४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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