SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 62 ) लता होती है, वहाँ पर ईयपथिक बंध होता है । यह पुण्य का बंधन है। इसकी स्थिति दो समय की है व यह ईर्यापथिक बंध केवल वीतराग के होता है । अंतराल गति में स्थूल शरीर तो नहीं होता, योग जन्य है । वक्रगति में कार्मण काययोग की चंचलता रहती है । अतः कार्मणकाय योग नहीं होता है— ओदारिक- मिश्र काय योग होता है । १ से ३ - प्राणातिपात आश्रव, मृषावाद आस्रव व अदत्तादान आखव ४ – मैथून आस्रव - अब्रह्मचर्य सेवन न करना । ५ - परिग्रह आस्रव - धन, धान्य, मकान आदि पर ममत्व न रखना ६- श्रोत्रेन्द्रिय आस्रव - श्रोत्रेन्द्रिय की द्वारा द्वेष युक्त प्रवृत्ति -चक्षुरिन्द्रिय ८ ७ - चक्षुरिन्द्रिय आस्रव - च - घ्राणेन्द्रिय आस्रव - घ्राणेन्द्रिय ६ - रसेन्द्रिय आस्रव - रसेन्द्रिय - स्पर्शेन्द्रिय आस्रव - स्पर्शेन्द्रिय १० ११ - मन आस्रव - मन की प्रवृत्ति आसव १२ - वचन आखव - वचन १३ - काय आस्रव - काया " १४ – भंडोप करण आखव - भण्ड-पात्र उपकरण - वस्त्र आदि को यत्नपूर्वक न आठवां बोल योग पन्द्रहमनोयोग के चार भेद : १ - सत्य मनोयोग २-असत्य - मिश्र ४ - व्यवहार "9 99 Jain Education International रखना । १५ -- सूचि कुशाग्र मात्र आस्रव - किंचित मात्र भी पापयुक्त प्रवृत्ति । 66 वचनयोग के चार भेद : ५- सस्य वचनयोग इनमें मन आस्रव, वचन आस्रव व काययोग शुभ और अशुभ दोनों है। बाकी अशुभ योग आस्रव के भेद हैं । शुभ कर्म योग की प्रवृत्ति से शुभ कर्म का बंध होता है और शुभयोग आव से अशुभ कर्मों का बंध होता है । ६-असत्य ७- मिश्र ८ व्यवहार 99 " "9 "" "" " "" प्रवाह ( धक्का ) रहता जुगति - एक समय की है " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy