SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 46 ) (२२) यह शब्द पुद्गलों से सूक्ष्म भी है, स्थूल भी है। (२३) इसे तैजस शरीर पुद्गलों से सूक्ष्म होना चाहिए । (२४) इसे वैक्रिय शरीर पुद्गलों से सूक्ष्म होना चाहिए | (२५) यह इन्द्रियों द्वारा अग्राह्य है । (२६) यह योगात्मा के साथ समकालीन है । (२७) द्रव्ययोग के साथ द्रव्य लेश्या का भी अविनाभाव सम्बन्ध है । (२८) मनोयोग - वचनयोग के पुद्गल -स्निग्ध- रुक्ष शीत ऊष्ण के होते हैं । (२६) यह नो कर्म पुद्गल है, कर्म पुद्गल नहीं है । (३०) यह पुण्य - पाप-बंध नहीं है । (३१) यह आत्म-प्रयोग से परिणत है, अतः प्रायोगिक पुद्गल है । (३२) यह पारिणामिक भाव है । ( ३३ ) इसका संस्थान अज्ञात है । (३४) देश बंध - सर्व बंधन का योग सम्बन्धी पाठ नहीं हैं । (३५) यह कषाय के अंतर्गत पुद्गल नहीं है । क्योंकि अकषायी के भी योग होता है लेकिन यह सकषायी जीव के कषाय से सम्भवतः अनुरंजित है । लेश्या के साथ अनुरंजित है । २- भाव योग क्या है ? (१) भाव योग जीव परिणाम है। (२) भाव योग अरुपी है । यह अवर्णी, अगंधी- अरसी अस्पर्शी है । (३) भाव योग अगुरुलघु है । (४) विशुद्धता - अविशुद्धता के तारतम्य जी अपेक्षा इसके असंख्यात स्थान है । (५) यह जीवोदय निष्पन्न है। 1 (६) आचार्यों के कथनानुसार भाव योग क्षय, क्षयोपशमन-उपशम भाव भी है। (७) योग शुभ - अशुभ दोनों है । (८) शुभ योग सुगति का हेतु है अशुभ योम दुर्गति का हेतु है । (६) नव पदार्थ में भाव योग जीव, आस्रव व निर्जरा है । (१०) आस्रव में योग आस्रव है। (११) शुभ भाव योग से निर्जरा होती है । ( १२ ) शुभयोग के समय शुभ लेश्या होती है । (१३) अशुभ योग के समय अशुभ लेश्या होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy