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________________ ( ३०८ ) मनोयोगी का अंतरकाल जघन्य अंतमुहूर्त, उत्कृष्ट वनस्पतिकाल-अनंतकाल जितना है। इसी प्रकार वचनयोगी का अंतरकाल जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वनस्पतिकाल जितना है। काययोगी का अंतरकाल जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त का है। अयोगी का अंतरकाल नहीं है। मनोयोगी का अन्तर जघन्य में एक अन्तर्महूर्त का और उत्कृष्ट वनस्पति काल प्रमाण है । इसके बाद पुनः वहजीव विशिष्ट मनोयोग्य पुद्गल द्रव्यों को ग्रहण करता है इतना ही अन्त वचनयोगी का जानना चाहिए। काययोगी का अन्तर जघन्य एक समय का है। जघन्य रूप से अन्तर प्रतिपादन करने वाला यइ सूत्र औदारिक काययोग की अपेक्षा से कहा गया है क्योंकि दो समयवाली अपातकाल गति में एक समय का अंतर होता है और उत्कृष्टतः जो एक अन्तमहूर्त का अन्तर कहा गया है वह परिपूर्ण औदारिक शरीर पर्याप्त की परिसमाप्ति की अपेक्षा से कहा गया है क्योंकि विग्रह समय से लेकर औदारिक शरीर पर्याप्ति की पूर्णता तक एक अंतर्मुहूर्त का अन्तर रहता है। .२ सयोगी-भवस्थ-केवली-अणाहारका का अंतर .३ अयोगी भवस्थ केवली अणाहारक का अंतर सजोगि-भवस्थ-केवलि-अणाहारागस्स जहन्नेण अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणविxxx| अजोगि भवत्थ केवलि अणाहारागस्स नस्थि अंतरं। -जीवा० प्रति सयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहुर्त है । अयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक का अन्तर नहीं है। टीका x x x ते चाष्टसामयिक केवलि-समुद्घातावस्थायां त्रिचतुष्पंचमरूपाः तेषु समबत्रयेषु केवलकार्मणकाययोगभाषात। उक्तञ्च-कार्मण शरीरयोगी चतुर्थके पचमे तृतीय च समयत्रयोऽपि तस्माद्भवत्यनाहारको नि"मात। -जीवा• प्रति ६ प्रमेयद्योतिकी टीका केवली समुद्घातके अप्ट समयो में तीसरे, चौथे व पाँचवे समय में अणाहारिक स्थिति बनती है। वह भवस्थ केवली अणाहारिक है। इसके सिवाय अनाहारिक स्थिति नहीं बनती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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