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________________ (ग) तृतीय जीव के भेद में-अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय में तीन योग-औदारिक, ___ औदारिकमिश्र काययोग व कार्मण काययोग । (घ) चतुर्थ जीव के भेद में - पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय में पाँच योग-१. औदारिक काययोग, २. औदारिकमिश्र काययोग, ३. वैक्रिय काययोग, ४ वैक्रियमिश्र काययोग तथा (५) कामण काययोग । (ङ) पाँचवे जीव के भेद में-अपर्याप्त द्वीन्द्रिय में-तीन योग औदारिक, औदारिक मिश्र काययोग व कार्मण काययोग । (च) छठे जीव के भेद में पर्याप्त द्वीन्द्रिय में दो योग होते है-औदारिक काय योग तथा व्यवहार भाषा । (छ) सातवें जीव के भेद में अपर्याप्त तेइन्द्रिय में तीन योग होते है-औदारिक काययोग, औदारिकमिश्र काययोग तथा कार्मण काययोग। (ज) आठवें जीव के भेद में-पर्याप्त तेइन्द्रिय में दो योग होते है-औदारिक काययोग व व्यवहार भाषा। (झ) नववें जीव के भेद में-अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय में सातवे जीव भेद की तरह तीन योग होते है। (ञ) दसर्वे जीव के भेद में पर्याप्त चतुरिन्द्रिय में आठवें जीव भेद की तरह दो योग होते है। (ट) ग्यारवें जीव के भेद में-अपर्याप्त असंशी पंचेन्द्रिय में सातवें जीव भेद की तरह तीन योग होते हैं । (ठ) बारहवे जीव के भेद में-पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय में आठवें जीव भेद की तरह दो योग होते हैं। (ड) तेरहवें जीव के भेद में-अपर्याप्त संशी पंचेन्द्रिय में चतुर्थ जीव भेद की तरह पाँच योग होते हैं। (ढ) चौदहवें जीव के भेद में पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में पन्द्रह योग होते हैं। .५५ जीव और योग समपद .१ समयोगी या विसमयोगी-नारकी यावत् वैमानिक देव दो भंते णेरड्या पढमसमयोषवण्णगा कि समजोगी, कि विसमजोगी ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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