SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 36 ) उपशम, क्षय या क्षयोपशम भाव है तथा चारित्र आत्मा है । शुभयोग - वीर्यान्तराय कम का क्षय, क्षयोपशम तथा शरीरनाम कर्म का उदय है । अशुभ योग मोह कर्म का उदय और शरीरनाम कर्म का उदय है । चारित्र भाव चार है - औपशाभिक, क्षायिक, क्षयोशमिक और पारिणामिक | चारित्र आत्मा एक है - चारित्र | चौदहवें गुणस्थान में योग नहीं है परन्तु चारित्र आत्मा है तथा कषाय भी नहीं है । योग के द्वारा होनेवाली क्रिया को करण कहते हैं। उसके तीन प्रकार है-करना, कराना व अनुमोदन करना । आचार्यों ने कहीं-कहीं योग को भी करण कहा है। तीनों करण का स्वरूप सदृश है। यदि किसी प्रवृत्ति के करने से पाप होता है तो कराने में भी पाप होता है और अनुमोदन में भी पाप होता है । इसी भाँति जिस प्रवृत्ति के करने में धर्म होता है तो उसके कराने व अनुमोदन में भी धर्म होगा । ब्रह्मचर्य के विवक्षा से २७ भेद भी किये गये हैं-देवता, मनुष्य व तिर्यच के साथ तीन करण व तीन योग से अब्रह्मचर्य का सेवन न करना । इस प्रकार ३ x ३३= २७ विकल्प हो जाते हैं । सुनि के शील-संयम साधना के उत्कृष्ट १८००० भेद हो जाते हैं । समझाने के लिए एक गाथा उपलब्ध होती है जे जो करंति मणसा, णिज्जिय आहारसन्ना सोइंदिये । पुढवि कायारंभ, खंतिजुत्ते ते मुणी वदे ॥ अर्थात पृथ्वी, अप, तेज, वाउ, वनस्पति, बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चउरिदिय, पंचन्द्रिय तथा अजीव – इन दस से क्षमादि दस धर्मों से गुणन करने से १०० भेद होते हैं । १०० × ५ - ५०० ( पाँच इन्द्रिय से गुणन करने से ) होते हैं । ५००x४ ( आहार आदि चार संज्ञा से ) गुणन करने पर २००० हो जाते हैं । इन भेदों के एक-एक का २००० होने से तीनों योगों के ( मन, वचन, काय ) ६००० होगे ! फिर करने, कराने व अनुमोदन - एक-एक ६००० होने से तीनों के ( ६००० × ३ ) १८००० हो जायेंगे । दिगम्वर ग्रंथों में भी शील के १८००० भेद मिलते हैं - वे हैं - स्त्री के चार प्रकार है, यथा- Jain Education International १ - मनुष्यणी, २ - देवांगना, ३ - पशु स्त्री, ४- - स्त्री चित्र । इन चारों के साथ तीन योग से अब्रह्म का सेवन नहीं करना । इस प्रकार ( ४X३ x ३ ) ३६ भेद हो गए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy