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________________ ( २४९ ) ·६६°१८२२ वाणव्यंतर देवों से पंचेन्द्रिय तिर्यं च योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक १-६ - वाणमंतरे णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिषखजोगिएसु ? एवं चेष ) उनके नौ ही गमकों में तीनों योग होते है । - भग० श २४ । उ २० । सू ५० ९६ १८२३ ज्योतिषी देवों से पंचेन्द्रिय तियंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक १- ९ - जोइलिए णं भंते ! जे भषिए पंखिदियतिरिखजोणिए सु ? एस वेष वक्तव्वया जहा पुढविकाइउद्देसए । XXX ) उनके नौ ही गमकों में तीनों योग होते हैं । - भग० श २४ । उ२० । सू ५२ ९६ १८२४ सौधर्म कल्पोपन्न वैमानिक देवों से पंचेन्द्रिय तियंच योनि से उत्पन्न होने योग्य जीवों में गमक १९ - सोहम्मे देवे णं भंते! जे भषिए पंचिदियतिरिक्खजोणिवसु उवषजित्तए Xxx सेसं जद्देव पुढविकाश्य उद्देसए नवसु षि गमएसु xxx ) उनके नव गमकों में तीनों योग होते हैं। - भग० श २४ । उ २० । सू ५४ *९६·१८'२५ ईशान कल्पोपन्न बैमानिक देवों से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( x x x एवं ईसाण देवे वि) उनके नव गमकों में तीन योग होते हैं । - भग० श २४ । उ २० । सू ५.४ '९६'९८'२६ सनत्कुमार से सहस्रार कल्पोपन्न वैमानिक देवों से पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है । ईसाण देवे वि । एएणं कमेणं अवसेसा वि जाब सहस्रदेवेसु उबवायव्वा ) उनके नव गमकों में तीन योग होते हैं । भग० श २४ । उ २० । सू ५४ ९६१९ मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में'९६°१९१ रत्नप्रभा पृथ्वी से तमतमाप्रभा के नारकी से उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( रयणप्पभापुढवि नेरइए णं भंते । जे भषिए मणुस्सेसु उषषज्जिसए × × × अवसेसा वक्तव्वया जहा पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उचबज्जंतस तब xxx सेसं तं चेव x x x जहा रयणप्पभाए बत्तव्वया तहा लकरप्पभाए बिxxx एवं जाब तमापुढषि नेरइए ) उनके नौ ही गमकों मैं तीनों योग होते हैं । - भग० श २४ । उ २१ | सू २ ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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