SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४७ ) *६६.१८'८ पृथ्वी कायिक जीवों से पंचेन्द्रिय तियंच पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( पुढविकाइए णं भंते ! जे भषिए पंचिदियतिरिषखजोणिएसु उधवजित्तर x x x तेणं भंते ! x x x सेसं तं चेच ) उनमें एक काययोग होता है । - भग० श २४ । उ२० । सू १० से १२ *९६·१८°६ अप्कायिक योनि से पंचेन्द्रिय तियंच योनि से उत्पन्न होने योग्य जीवों मेंगमक १-६ - पुढचिकाइए णं भंते! जे भविए पंविदियतिरिक्खजोणिएसु उवषजित्तए । XXX | तेणं भंते ! जीवा० १ x x x जहेव पुढषिक्काइपसु उवषजमाणाणं लदी तहेव सव्वत्थ Xxx ) उनमें एक काय योग होता है । — भाग श २४ । उ २० । १० से १२ '६६·१८'१० अग्निकायिक जीवों से पंचेन्द्रिय तियच योनि से उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (देखो पाठ ६६ १८६) उनके नौ गमकों में एक काययोग होता है । - भग० श २४ । उ २० । सू १० से १२ . *६६·१८·११ वायुकायिक योनि में पंचेन्द्रिय तियंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में·६६°१८′१२ वनस्पतिकायिक योनि से पंचेन्द्रिय तियंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में उनके नौ ही गमकों में एक काययोग होता है (देखो ६६-१८-६ ) -भग० श २४ । उ२० । सू १०-१२ '६६ १८१३ द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय योनि से उत्पन्न होने योग्य जीवों में (देखो६६ १८६) '६६ १८१४ उनमें नौ ही गमकों में दो योग- काययोग-वचन योग होता है मध्यम तीन '६६·१८'१५ गमकों में केवल काय-योग होता है। भग० श २४ । उ २० । सु १०-१२ ·९६°१८′१६ असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच योनि से पंचेन्द्रिय तिर्यच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में - असग्निपं चिदयतिरिक्खओणिए णं भंते 1 जे भविए पंचेन्द्रियतिरिक्तजोणिएसु उवयजित्तए x x x तेण भंते ! अघसेसं जहेव पुढविक्काइए सु उबवज्जमाणस्स असन्निस्स तहेव निरवसेस जाव भवाएसोत्ति x x x 1 ) उनमें काययोग-वचनयोग होता है । लेकिन मध्यम तीन गमकों में केवल काययोग होता है । -भग० श २४ । उ० २० । सु १४-२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy