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________________ ( २१६ ) .७५ अचक्षुदर्शनी में - अचक्खुदंसणाणं भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग xxx । तेसिं चेष पजत्ताणं xxx एगारह जोग xxx| तेसिं चेष अपजत्ताणंxxx वत्तारि जोग XXX । अचक्खुदंसण-मिच्छाइट्ठीणंxxx तेरह जोग xxxi तेसिं चेव पजत्ताणं xxx दस जोग xxxतेसिं चेष अपजत्ताणं xxx तिण्णि जोग xxx| सासणसम्माइटिप्पहुडि जाप खीणकसाओ त्ति ताव मूलोघ-भंगो। -षट० खं ।। १। पु २i पृ. ७४३-४७ अचक्षुदर्शनी में पन्द्रह योग कहा है। इनके पर्याप्त में ग्यारह योग, अपर्याप्त में चार योग ( औदारिकमिश्र काययोग, वे क्रियमिश्र काययोग, आहारकमिश्र काययोग, कार्मण काययोग) होते हैं। अचक्षुदर्शनी मिथ्यादृष्टि में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग-४ मन के योग, ४ वचन के योग-वैक्रिय काययोग, औदारिक काययोग होते है। इनके अपर्याप्त में तीन योग-औदारिक,, औदारिकमिश्र काययोग, कामण काययोग होते हैं। सास्वादान सम्यग्दृष्टि यानत क्षीणकषाय गुणस्थान में मुलौधिक की तरह योग कहना चाहिए। .७६ अवधिदर्शनी में ओहिदसणीणं भण्णमाणे xxx पण्णारह जोग x xx। तेसिं चेष पजत्ताणं xxx एगारह जोग xxx । तेसिं चेष अपजत्ताणंxxx चत्तारि जोग x x x | असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव खीणकसाओ त्ति ताव ओहिणाणभंगो। -षट् खं० १, १ । २। पृ० ७४८-५. ___ अवधि दर्शन में पन्द्रह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में ग्यारह योग, अपर्याप्त में चार योग होते हैं। अवधिदर्शनी असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से क्षीणकषाय गुणस्थान में अवधिशान की तरह वक्तव्यता कहनी चाहिए। .७७ केवलदर्शनी में केवलदसणस्स केषलणाण-भंगो। -षट • खं १ । १ । पु २ । पृ. ७५० केवलदर्शनी में सात योग होते है। केवलदर्शनी सयोगी केवली गुणस्थान में सात योग, केवलदर्शनी अयोगी केवली गुणस्थान में योग नहीं होता है। केवलदर्शनी सिद्धों में योग नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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