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________________ ( २१६ ) .६२ मानकषायी में .६३ मायाकषायी में .६४ लोभकषायी में एवं ( जहा कोधकसायाणं ) माण-मायाकसायाणं पि मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियहि त्ति वत्तव्वं । लोभकसायस्स कोधकसाय-भंगो। णवरि ओघालावे भण्णमाणे दस गुणट्ठाणाणि xxx। -षट् • खं १, १ । पु २ । पृ० ७१२ __ मानकषायी तथा मायाकषायी के विषय, में जैसा क्रोधकषायी के विषय में कहावैसा कहना चाहिए। मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से द्वितीय अनिवृत्ति बादर गुणस्थान तक जानना चाहिए। लोभकषायी के विषय में क्रोधकषायी की तरह जानना चाहिए लेकिन ( सूक्ष्म संपराय तक) मिथ्या दृष्टि से दसवें गुणस्थान तक कहना चाहिए। .६५ अकषायी में अकसायाणं भण्णमाणे xxx एगारह जोग अजोगो वि अस्थि xxx। उवसंतकसायप्पहुडि जाव सिद्धा त्ति ओघ-भंगो। -षट् ० खं १, १ । पु । पृ० ७१३-१४ अकषायी में ग्यारह योग होते हैं । उपशांत मोह गुणस्थान व क्षीण मोहनीय गुणस्थान में नौ योग तथा तेरहवें गुणस्थान में सात योग होते हैं। चौदहवां गुणस्थान अयोगी होता है। सिद्ध भी अयोगी होते हैं । .६६ मति-अज्ञानी में .६७ श्रुत-अज्ञानी में मदि-सुदअण्णाणीणं भण्णमाणे xxx तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पजत्ताणंxxx दस जोग xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणं x x x तिणि जोग xxx । मदि-सुदअण्णाण-मिच्छाइट्ठीणं x x x तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पजत्ताणं xxx दस जोग x x x | तेसिं चेव अपजत्ताणं x x x तिण्णि जोग xxx । मदि-सुदअण्णाण-सालणसम्माइट्ठीणं x x x तेरह जोग xxx। तेसि चेव पजत्ताणं x x x दस जोग xxx। तेर्सि चेव अपजत्ताणं xxx तिण्णि जोग xxxi -षट • खं १, १ । पु २ । पृ० ७१४-२० मति-अज्ञानी व श्रुतअज्ञानी में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते हैं । औदारिकमिश्र काययोग, वैक्रियमिश्र काययोग-कार्मणकाययोग ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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