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________________ ( १५७ ) सयोगी-जीवोदय निष्पन्न भाव है । नोट-योगी में भाब पांच होते हैं : (१) औदयिक भाव (२) क्षायिक भाव (३) क्षायोपशमिक भाव (४) औपशमिक भाव (५) पारिणामिक भाव छहा सन्निपातिक भाव भी होता है । .०२४ भावयोग और उपयोग तस जोय वेय सुक्काहार नर पणिदि सन्नि भवि सव्वे । नयणेयर पण लेसा, कसाइ दस केवलदुगुणा ॥ -कर्म० मा ४ । गा ३१ । पृ. १६५ टीका-xxx 'योगेषु' मनोवाकायरूपेषु x x x सर्वे द्वादशाप्युपयोगाः सम्भवन्ति, एतेषु सर्वेष्वपि सम्यक्त्वदेशविरतिसर्व घिरत्यादीनां सम्भवात् । मन, वचन काय रूप योग है। बारह ही प्रकार के उपयोग में योग होता है । सम्यक्त्वी, देश विरति और सर्व विरति आदि में योग और उपयोग दोनों होते हैं । .०२५ भाषयोग की चंचलता-अस्थिर योग केवली णं भंते ! अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु हत्थंवा पायंषा बाहंवा ऊरुवा ओगाहित्ता णं चिट्ठति, पभू णं केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपएसेसु हत्थंवा जापओगाहित्ता णं चिहित्तए ? गोयमा ! णो इण8 समठे। से केणणं भंते ! जाप-ओगाहित्ता णं चिहित्तए ! गोयमा ! केवलिस्स णंएवीरिय-सजोग-सहव्वयाए चलाई उबकरणाई भवंति, चलोवकरणट्टयाए य णं केवली अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु हत्थं वा, जाव-चिट्ठह ; णो णं पभू केवली सेयकालंसि पि तेसु चेव जापचिद्वित्तए, से तेणढणं जाव-धुच्चइकेवली णं अस्सि समयंसि जेसु आगासपएसेसु जाव-चिट्ठइणो णं पभूकेवली सेयकालंसि वि तेनु चेष आगासपएसेसु हत्थं वा जाव-चिहित्तए। -भग० श ५ । उ ४ । प्र ३६-३७ । पृ. ८२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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