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________________ ( १४६ ) जर एगिदिय जाव परिणए, किं वाउक्काइयएगिदिय जाध परिणए, अवाउक्काइयएगिदिय जाव परिणए १ गोयमा! वाउक्काइयएगिदिय जाव परिणए, जो अबाउक्काइय जाव परिणए ; एवं एएणं अभिलावेणं जहा 'ओगाहणसंठाणे वेउब्वियसरीरं भणिय तहा इहघि भाणियव्वं, जाव पजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोपधाइयवेमाणियदेवपंचिंदियवेउब्विय-सरीरकायप्पओगपरिणए वा, अपजत्तसव्वइसिद्ध अणुप्तरोषवाइय जाव परिणए वा। -भग० श ८ । उ १ । प्र ४४-४५ यदि एक द्रव्य वैक्रियशरीरकायप्रयोग परिणत होता है तो वह एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरकायप्रयोग परिणत होता है, अथवा पंचेन्द्रिय व क्रिय शरीरकायप्रयोग परिणत होता है। यदि एक द्रव्य वायुकायिक एकेन्द्रिय वैकिय शरीरकायप्रयोग परिणत होता है। परन्तु अवायुकायिक एकेन्द्रिय वेक्रिय शरीरकायप्रयोग परिणत नहीं होता है । इसी प्रकार इस अभिलाप द्वारा 'प्रज्ञापना सूत्र के इक्कीसवें 'अवगाहना-संस्थान' पद में वैक्रिय शरीर के सम्बन्ध में कथित वर्णन के अनुसार यहाँ भी जानना चाहिए। यावत पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपातिक कल्पातीत वैमानिकदेव पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीर कायप्रयोग परिणत होता है, या अपर्याप्त सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तरोपातिक कल्पातीत वैमानिकदेव पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है । विवेचन-वैक्रियकाययोग, वैक्रिय शरीर के द्वारा होने वाले वीर्यशक्ति के व्यापार को 'वैक्रिय काययोग, कहते हैं। यह मनुष्यों के और तिर्यचों के वैक्रियलब्धि के बल से वैक्रिय शरीर धारण कर लेने पर होता है। देव और नेररिक जीवों के वैक्रिय काययोग 'भव प्रत्यय' होता है। •०६ वैक्रियमिश्र काययोगी और एक द्रव्व-परिणाम जइ वेउब्धियमीसासरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिदियमीसासरीरकायप्पयोगपरिए जाव पंचिदियमीसासरीरकायप्पओगपणिए ? एवं जहा वेउब्वियं तहा वेउव्वियमीलगं वि, णवरं देव-णेरइयाणं अपज्जगाणं सेसाणं पजत्तगाणं तहेष, जाव णो पजत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोषवाइय जाष परिणए, अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयदेवपंचिदियवेउब्वियमीसारीरकायप्पयोगपरिणए। --भग श ८। उ १ । प्र ४६ जिस प्रकार वैक्रिय शरीर कायप्रयोग परिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार वैक्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोग परिणत के विषय में थी जानना चाहिए। परन्तु विशेषता यह है कि वे क्रिय मिश्र शरीर काय प्रयोग देव और नेरयिक के अपर्याप्त के विषय में और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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